आज 31 मार्च को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी मनाई जा रही है. भगवान श्रीगणेश को समर्पित संकष्ठी चतुर्थी हर माह में एक बार शुक्ल और एक बार कृष्ण पक्ष को मनाई जाती है. गौरतलब है कि बुधवार के दिन भगवान गणेश की अराधना की जाती है ऐसे में बुधवार को ही संकष्टी चतुर्थी पड़ने से इसका महत्व काफी ज्यादा बढ़ गया है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार संकष्टी चतुर्थी पर गणपति जी की विधि-विधान से पूजा करने व व्रत रखने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. विघ्नहर्ता अपने भक्तों की सभी पीड़ा हर लेते हैं.
भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी तिथि आरंभ- बुधवार 31 मार्च को दोपहर 02 बजकर 06 मिनट से शुरू
भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी तिथि समाप्त – 01 अप्रैल 2021 गुरुवार को सुबह 11 बजे तक
सूर्य व चंद्रमा का समय
सूर्योदय का समय- सुबह 06 बजकर 16 मिनट पर
सूर्यास्त का समय- शाम के 06 बजकर 34 मिनट पर
चंद्रोदय का समय- 31 मार्च को रात 09 बजकर 40 मिनट पर
चन्द्रास्त का समय- 1 अप्रैल को सुबह 08 बजकर 44 मिनट पर
ऐसे करें संकष्टी चतुर्थी पर विघ्नहर्ता की पूजा
सुबह सबसे पहले स्नाना आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद पूजा के लिए साफ आसन या चौकी पर भगवान श्रीगणेश जी की प्रतिमा को स्थापित करें. अब धूप-दीप आदि से गणपति की अराधना करें. पूजा करते समय मुख को उत्तर या पूर्व दिशा में ही रखें. पूजा के दौरान ऊँ गणेशाय नम: या ऊँ गं गणपते नम: मंत्रों का अवश्य जाप करें. पूजा करने के बाद लड्डू या तिल से बने मिष्ठान से भगवान श्रीगणेश का भोग लगाएं. शाम के समय व्रत कथा पढ़कर और चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोल देंवे. व्रत पूरा करने के बाद दान जरूर करें.
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीगणेश को समपर्ति संकष्ठी चतुर्थी का व्रत करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. वैसे भी शास्त्रों में गणपति को विघ्नहर्ता कहा गया है. ऐसे मे जो भी सच्चे हृदय से विघ्नहर्ता की अराधना करता है उसकी सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन करना भी शुभकारी माना जाता है.
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