Sankashti Chaturthi 2022 Date, Pujan Vidhi: हर महीने में दो बार चतुर्थी पड़ती है. एक बार पूर्णिमा के बाद, दूसरी बार अमावस्या के बाद. दोनों चतुर्थी का नाम अलग-अलग है पूर्णिमा के बाद पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. अमावस्या के बाद पड़ने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी का विशेष महत्व है इसे भारत के अधिकांश भाग में गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. 19 मई दिन गुरुवार को संकष्टी चतुर्थी पड़ रही है. इस दिन समस्त दुखों का निवारण करने वाले संकटमोचन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा का विशेष महत्व है.
पूजा विधि
साल भर में कुल 13 चतुर्थी पड़ती है. हर चतुर्थी का अपना एक विशेष महत्व है. हर चतुर्थी पर व्रत कथा अलग-अलग कही जाती है. संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा की जाती है. इस दिन व्रत रखने वाला सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके व्रत का प्रारंभ करता है और सच्चे मन से भगवान गणेश की आराधना करता है, पूजा करता है. शाम के समय चंद्र दर्शन के उपरांत यह व्रत समाप्त किया जाता है. उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह करके भगवान गणेश की पूजा की जाती है.
भगवान गणेश को लड्डू, मोदक, फल, और फूल चढ़ाया जाता है. धूप दीप से आरती की जाती है. गणेश भगवान को तिल के लड्डू का भोग लगाया जाता है. केला और नारियल के प्रसाद का वितरण किया जाता है. भगवान के मस्तक पर रोली कुमकुम का तिलक लगाया जाता है.
संकष्टी चतुर्थी पूजा का महत्व
संकष्टी चतुर्थी का व्रत सूर्योदय से प्रारंभ होता है और सूर्यास्त के बाद चंद्र दर्शन से समाप्त होता है. इस इस समय विघ्नहर्ता भगवान गणेश की उपासना करने से घर के सभी नकारात्मक प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. घर की सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है. संकट हरने वाले संकष्टी व्रत का पालन करने से घर में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं और गृह क्लेश से मुक्ति मिल जाती है.
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