Kabir Dohe on Ram: संत कबीर ने बताए हैं चार राम, क्या है इसमें अंतर, जानिए भगवान राम पर कबीर के दोहे
Kabir Dohe on Ram: संत कबीर दास एक महान संत, विचारक, समाज सुधारक और धार्मिक एकता के पक्षधर थे. उन्होंन राम के नाम कई दोहे लिखें. जानते हैं राम पर लिखे कबीर के दोहे.
Kabir Dohe on Ram: कबीर दास केवल एक संत नहीं थे, बल्कि वे एक महान विचारक, समाजक सुधारक और धार्मिक एकता के पक्षधर भी थे. उन्होंने अपनी लेखनी के जरिए समाज में फैली बुराईंयों और भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया. साथ ही कबीर दास ने अपने दोहे से लोगों को जीवन की कई सीख दी.
संत कबीर दास ने राम पर भी कई दोहे लिखें. उन्होंने राम के स्मरण, राम के प्रति सेवा, राम भक्ति के फल, धार्मिक सद्भावना पर राम के साथ ही कबीर अपने दोहे में राम पर दृढ़ विश्वास भी रखने को कहते हैं.
राम-राम को कबीर ने बनाया अपना गुरुमंत्र
कबीर ने राम-राम को अपमा गुरुमंत्र बनाया. इसे लेकर किंवदंती है कि, कबीर अपने स्वामी रामानंद से दीक्षा पाने के लिए एक सुबह अंधेरे में पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर लेटे हुए थे, तभी अंधेरे में स्वामी रामानंद का पैर कबीर को लग गया. पैर लगते ही कबीर ने मुंह से राम-राम निकला और इस तरह से कबीर को 'राम-राम' का गुरुमंत्र मिल गया.
संत कबीर ने बताए हैं चार राम
एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा।
एक राम को सकल परासा, एक राम त्रिभुवन से न्यारा।।
तीन राम को सब कोई धयावे, चतुर्थ राम को मर्म न पाने।
चौथा छाड़ि जो पंचम धयावे, कहे कबीर सो हम को पावे।।
अपने दोहे में कबीर चार राम के बारे में बताते हैं जो इस प्रकार है-
- एक दशरथ का राम- देहधारी
- एक प्रकृति में लेटा राम- जीव या अधिदेव रूपी राम
- एक सबके मन भाया राम- आत्मा
- एक सबसे न्यारा राम- परमात्मा
राम नाम स्मरण पर कबीर के दोहे (Kabir ke Done on Ram)
मेरे संगी दोइ जणा, एक वैष्णौ एक राम
वो है दाता मुकति का, वो सुमिरावै नाम.
अर्थ: मेरे तो ये दो ही संगी साथी हैं, एक वैष्णव और दूसरा राम. राम जहां मुक्ति के दाता हैं तो वहीं वैष्णव नाम स्मरण करवाता है. तो मुझे किसी और साथी से क्या लेना-देना.
राम नाम सुमिरन करै, सदगुरु पद निज ध्यान
आतम पूजा जीव दया लहै सो मुक्ति अमान।
अर्थ: जो राम नाम का सुमिरन और सदगुरु के चरणों का ध्यान करता है, जो आत्मा से ईश्वर की पूजा करता है और जीवों पर दया भाव रखता है, उसे निश्चित ही मुक्ति मिलती है.
कबीर माया पापणीं, हरि सूं करे हराम।
मुखि कड़ियाली कुमति की, कहण न देई राम।।
अर्थ: यह माया बड़ी ही पापिन है. यह प्राणियों को परमात्मा से विमुख करती है और उनके मुंह पर दुर्बुर्धि की कुंडी लगा देती है और राम-नाम का जप नहीं करने देती.
सहकामी सुमिरन करै पाबै उत्तम धाम
निहकामी सुमिरन करै पाबै अबिचल राम।
अर्थ: जो फल की आकांक्षा से ईश्वर का स्मरण करता है, उसे अति उत्तम फल प्राप्त होता है. लेकिन जो किसी इच्छा या आकांक्षा के बिना ईश्वर का स्मरण करता है उसे आत्म साक्षात्कार का लाभ मिलता है.
राम रहीमा ऐक है, नाम धराया दोई,
कहे कबीर दो नाम सूनि, भरम परो मत कोई।
अर्थ: राम और रहीम एक ही ईश्वर के दो नाम दिए गए हैं. कबीर कहते हैं कि ये दो नाम सुनकर किसी तरह का भ्रम नहीं होना चाहिए.
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