Santan Saptami 2022: संतान सप्तमी व्रत कब? इस दिन महादेव- मां पार्वती की पूजा के बाद जरूर पढ़े ये कथा, जानें महत्व
Santan Saptami 2022: संतान सप्तमी व्रत 3 सितंबर 2022 को रखा जाएगा. जानते हैं संतान सप्तमी की तिथि और कथा.
Santan Saptami 2022 Vrat katha: हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को संतान सप्तमी का व्रत रखा जाता है. इस दिन महिलाए शिव-पार्वती की पूजा कर उनसे संतान सुख और उसकी उन्नति की कामना करती है. इस साल संतान सप्तमी व्रत 3 सितंबर 2022 को रखा जाएगा. कहते हैं इस व्रत में कथा का बहुत महत्व है. संतान सप्तमी की पूजा के बाद इसकी कथा का जरूर श्रवण करें, मान्यता है कि कथा पढ़ने के बाद ही संतान सप्तमी का व्रत पूर्ण माना जाता है. आइए जानते हैं संतान सप्तमी की कथा.
संतान सप्तमी 2022 तिथि (Santan Saptami 2022 Time)
भाद्रपद शुक्ल सप्तमी आरंभ - 2 सितंबर 2022, 01.51 PM
भाद्रपद शुक्ल सप्तमी समाप्त - 3 सितंबर 2022, 12.28 PM
संतान सप्तमी व्रत कथा (Santan Saptami Vrat katha)
एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि मथुरा में मेरे माता-पिता ने लोमश ऋषि की बहुत सेवा की. माता देवकी और वसुदेव की भक्ति देखकर ऋषि बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने उनसे संतान सप्तमी का व्रत करने को कहा था. ऋषि ने संतान सप्तमी की कथा बताई.
संकल्प लेकर व्रत करना भूल गई रानी
कथा के अनुसार नहुष अयोध्यापुरी के राजा की पत्नी चंद्रमुखी और उसी राज्य में रह रहे विष्णुदत्त नाम के ब्राह्मण की पत्नी रूपवती अच्छी सहेली थी. एक दिन दोनों सरयू में स्नान करने गईं. वहां अन्य स्त्रियां पार्वती-शिव की प्रतिमा बनाकर पूजन कर रही थी. दोनों ने महिलाओं से इस पूजन का महत्व समझा और संतान प्राप्ति के लिए संतान सप्तमी व्रत को करने का संकल्म लेकर डोरा बांध लिया, लेकिन घर लौटने पर वो इस व्रत को करना भूल गईं.
अगले जन्म में भी संतान से रही वंचित
मृत्यु के पश्चात रानी वानरी और ब्राह्मणी ने मुर्गी की योनि में जन्म लिया. कालांतर में दोनों पशु योनि छोड़कर पुन: मानव योनि में आईं. इस जन्म में चंद्रमुखी मथुरा के राजा की रानी बनी जिसका नाम था ईश्वरी, वहीं ब्राह्मणी का नाम भूषणा था. इस जन्म में भी दोनों में बड़ा प्रेम था. भूषणा को पुर्नजन्म का व्रत याद था, इसलिए उसकी इस जन्म में आठ संतान हुई. लेकिन रानी व्रत भूलने के कारण इस जन्म में भी संतान सुख नहीं भोग पाई.
व्रत के प्रभाव से मिला संतान सुख
एक दिन भूषणा पुत्रशोक में डूबी रानी ईश्वरी को सांत्वना देने पहुंची लेकिन उसे देखते ही रानी के मन में ईर्ष्या पैदा हो गई. उसने उसके बच्चों को मारने का प्रयास किया लेकिन शिव-पार्वती और व्रत के प्रभाव से भूषणा के बच्चों को कोई नुकसान नहीं हुआ. उसने भूषणा को बुलाकर सारी बात बताईं और फिर क्षमा याचना करके उससे पूछा- आखिर तुम्हारे बच्चे मरे क्यों नहीं. भूषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात याद दिलाई और कहा कि संतान सप्तमी व्रत के प्रभाव से मेरे पुत्रों का बाल भी बांका नहीं हुआ. इसके बाद रानी ईश्वरी ने भी संतान सुख पाने वाले ये व्रत रखा और 9 माह बाद एक सुंदर बालक को जन्म दिया. तब से ही संतान प्राप्ति और उसकी रक्षा के लिए ये व्रत किया जाता है.
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