Sashtang Pranam: भारतीय संस्कृति में प्रणाम करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. मान्यता है कि प्रणाम करने से न सिर्फ आशीर्वाद मिलता है, बल्कि ये इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति अपने अभिमान को छोड़ चुका है. शास्त्रों में कहा गया है कि एक दण्डवत प्रणाम करने से एक यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है. शास्त्रों में दंडवत यानी कि साष्टांग प्रणाम को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है. आइए जानते है क्या है साष्टांग दंडवत प्रणाम करने का महत्व और क्यों ये महिलाओं को करना निषेध है.


दण्डवत प्रणाम को उपासना की एक प्रक्रिया माना गया है. षोडषोपचार पूजन विधि में सोलह विभिन्न उपचारों से भगवान की पूजा की जाती है. जिसमें अंतिम उपचार साष्टांग दंडवत प्रणाम माना गया है. साष्टांग दंडवत प्रणाम का अर्थ होता है अहंकार त्यागकर स्वयं को भगवान को सौंप देना. आमतौर पर साष्टांग की मुद्रा में प्रणाम किसी मंदिर और तीर्थस्थल पर किया जाता है. अपने गुरुजनों के चरणों में भी इस प्रकार लेटकर साष्टांग करने की हमारी परंपरा रही है.


क्या हैं इसके लाभ:



  • साष्टांग दंडवत प्रणाम करते समय हमारे शरीर के 8 अंग पृथ्वी का स्पर्श करते हैं. इस स्थिति में हमारा मन शांत होता है और हम पृथ्वी की सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर पाते हैं.

  • जब व्यक्ति अपना सबकुछ भगवान को समर्पित करने के भाव से दंडवत प्रणाम करता है तो उसमें सांसारिक कष्टों से मुक्ति का भाव पैदा होता है. जो मानसिक तनाव से राहत दिलाता है. साष्टांग मुद्रा एक योग आसन है इसलिए इससे शारीरिक तनाव  भी दूर होता है.


महिलाओं को क्यों मना है साष्टांग प्रणाम


महिलाओं का दंडवत प्रणाम शास्त्रों में अनुचित माना गया है. शास्त्रों के अनुसार स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष कभी जमीन पर स्पर्श नहीं होना चाहिए. क्योंकि महिलाएं गर्भ में एक जीवन को पालती हैं और वक्ष उस जीव को पोषण देते हैं.


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