शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा का विधान है. इस दिन सच्ची श्रद्धा और भक्ति से शनिदेव की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. धार्मिक मान्यता है कि शनिदेव भगवान श्री कृष्ण की अनन्य भक्त हैं. कहते हैं शनिवार के दिन श्री कृष्ण की पूजा से भी सभी बाधाएं दूर होती हैं.  शनि देव को कर्मफल दाता भी कहा जाता है. व्यक्ति के कर्मों के हिसाब से ही उन्हें फल देते हैं. बुरे कर्म वालों को अशुभ फल और अच्छे कर्म वालों को शुभ फल दिए जाते हैं. शनिवार के दिन शनि देव की पूजा के बाद उनकी आरती अवश्य करनी चाहिए. इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. 


शनिवार व्रत की आरती:


आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।


वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी॥


पहली आरती प्रहलाद उबारे।


हिरणाकुश नख उदर विदारे॥


दूसरी आरती वामन सेवा।


बलि के द्वार पधारे हरि देवा॥


तीसरी आरती ब्रह्म पधारे।


सहसबाहु के भुजा उखारे॥


चौथी आरती असुर संहारे।


भक्त विभीषण लंक पधारे॥


पांचवीं आरती कंस पछारे।


गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले॥


तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा।


हरषि-निरखि गावें दास कबीरा॥


 


शनिदेव की आरती


जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।


सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥


जय जय श्री शनि देव....


श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।


नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥


जय जय श्री शनि देव....


क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।


मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥


जय जय श्री शनि देव....


मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।


लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥


जय जय श्री शनि देव....


देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।


विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥


जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।


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