Sawan 2020: आज है सावन का दूसरा सोमवार, जानें शुभ मुहूर्त और शिव आरती
Sawan Somvar Vrat 2020: सावन मास का दूसरा सोमवार 13 जुलाई यानि आज है. सावन चातुर्मास का पहला मास है. देवशयनी एकादशी पर जब भगवान विष्णु विश्राम करने के लिए पाताल लोक चले जाते हैं तो सृष्टी की देखरेख शंकर जी करते है. इसलिए सावन में शिव पूजा का विशेष पुण्य प्राप्त होता है.
Sawan Somwar 2020: पंचांग के अनुसार 13 जुलाई को सावन मास की अष्टमी है. इस दिन सावन का दूसरा सोमवार है. सावन के दूसरे सोमवार का व्रत और भगवान शिव की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है. शिव भक्त इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव की उपासना में लीन रहते हैं.
सावन के दूसरे सोमवार को कई शुभ योगों का निर्माण हो रहा है. इन योगों में भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं. पंचांग के अनुसार इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं- अभिजित मुहूर्त: 11:59 AM से 12:54 PM अमृत काल: 08:33 AM से 10:20 PM विजय मुहूर्त: 02:45 PM से 03:40 PM गोधूलि मुहूर्त: 07:08 PM से 07:32 PM सायाह्न सन्ध्या: 07:21 PM से 08:23 PM
सावन के दूसरे सोमवार की पूजा विधि सोमवार का व्रत सूर्योदय से आरंभ कर सकते हैं और तीसरे तीसरे प्रहर के बाद पारण कर सकते हैं. सोमवार को सुबह स्नान करने के बाद पूजा आरंभ करने के साथ ही व्रत का संकल्प लें. इस दिन भगवान शिव का अभिषेक करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं. भगवान शिव की पूजा के साथ माता पार्वती, गणेश जी और कार्तिकेय की भी पूजा करें. पूजा सामग्री में जल, दुध, दही, चीनी, घी, शहद, फल और पुष्प का प्रयोग अवश्य करें. इसके अतिरिक्त शिव जी की प्रिय चीजों का भी उपयोग करें. अभिषेक के दौरान दौरान इत्र का भी प्रयोग करें. पूजा के अंत में शिव आरती करें.
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शिव आरती जय शिव ओंकारा, ओम जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अद्र्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा... एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा... दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा... अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा...श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे। सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा... कर के मध्य कमंडल चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥ ओम जय शिव ओंकारा... ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा... लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अद्र्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ ओम जय शिव ओंकारा... पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा... जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा... काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा... त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे॥ ओम जय शिव ओंकारा...
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