Jyotirlinga: नागेश्वर है भगवान शिव का दसवां ज्योतिर्लिंग, कारागार में हुए थे प्रकट
Jyotirlinga Temples Of India: सावन मास में ज्योतिर्लिंग का स्मरण करने से शिवजी प्रसन्न होते हैं. सावन के सोमवार में ज्योतिर्लिंग की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है. आज सावन का तीसरा सोमवार है. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का दसवां ज्योतिर्लिंग है. आइए जानते हैं इस ज्योतिर्लिंग की कथा.
Nageshvara Jyotirling: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूरे देश में विशेष मान्यता है. भगवान शिव का यह दसवां ज्योतिर्लिंग गुजरात में द्वारिकापुरी से 25 किलोमीटर की दूरी पर विराजमान है. मान्यता है कि जो भी सच्चे मन और श्रृद्धाभाव से यहां आता है भगवान शिव उसकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं.
नागदेवता के रूप में विराजमान हैं भगवान शिव नागेश्वर मंदिर में भगवान शिव नाग देवता के रूप में विराजमान हैं. भगवान शिव को नागों को देव भी कहा जाता है. इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को नागेश्वर कहा जाता है जिसका अर्थ होता है नागों का ईश्वर.
ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से मिट जाते हैं पाप नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में एक आस्था ये भी है कि इस मंदिर में सावन मास में सोमवार को विधि पूर्वक भगवान शिव की पूजा करने से पापों से मुक्ति मिल जाती है. वहीं जीवन के सभी प्रकार के संकट भी मिट जाते हैं.
व्यापारी को दिए थे भगवान शिव ने दर्शन एक पौराणिक कथा के अनुसार सुप्रिय नाम का एक व्यापारी भगवान शिव का परम भक्त था. भगवान शिव पर इस व्यापारी की अट्ट आस्था थी. व्यापार के साथ साथ यह व्यापारी धर्म कर्म के कार्यों में भी विशेष रूचि रखता था. व्यापारी की भक्ति की चर्चा हर स्थान पर होने लगी. दारुक नाम का एक राक्षस व्यापारी की इस ख्याति और शिव भक्ति से क्रोधित हो उठा. राक्षस व्यापारी को हानि पहुुंचाने की कोशिश करने लगा.
एक दिन राक्षस को व्यापारी को नुकसान पहुंचाने का अवसर मिल गया. व्यापारी जब व्यापार के लिए अपनी नौका से दूसरे देश को जाने लगा तो मौका पाकर राक्षस ने व्यापारी की नाव पर हमला बोल दिया. राक्षस ने व्यापारी और उसके सभी सहयोगियों को बंदी बना लिया और अपने बंदी गृह में बंदी बनाकर डाल दिया. राक्षस व्यापारी को यातनाएं देने लगा. लेकिन व्यापारी चुपचाप यातनाएं सहते हुए भगवान शिव की भक्ति में लीन रहने लगा. धीरे धीरे व्यापारी से प्रभावित होकर कारागार में बंद अन्य बंदी भी शिव भक्त हो गए. वे भी भगवान शिव की साधना में लीन रहने लगे. इस बात का पता जब राक्षस को हुआ तो वह उसे बहुत गुस्सा आया.
गुस्से में राक्षस कारागार में व्यापारी से मिलने पहुंचा. जहां व्यापारी शिवजी की भक्ति में लीन था. यह देखकर उसे और भी गुस्सा आ गया. गुस्से में उसने अपने सैनिकों को व्यापारी को मार डालने का आदेश दिया. व्यापारी तभी भयभीत नहीं हुआ और शिवजी से अपने साथियों की रक्षा की प्रार्थना करने लगा. राक्षस के सैनिकों ने जैसे ही व्यापारी पर तलवार से हमला करने की कोशिश की भगवान शिव कारागार में ही जमीन फाड़कर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए. भगवान शिव ने व्यापारी को पाशुपत अस्त्र दिया और कहा कि इससे अपनी रक्षा करना. इस अस्त्र से ही व्यापारी ने राक्षस का वध कर दिया.
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