Sawan Shivratri Puja and Shiva Aarti: सावन मास भगवान शिव का प्रिय मास है. चातुर्मास में भगवान शिव सृष्टि के सभी कार्यों को देखते हैं. मान्यता है कि चातुर्मास में भगवान शिव पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों को आर्शीवाद प्रदान करते हैं. इसलिए सावन में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है. सावन में पड़ने वाले सोमवार का विशेष महत्व बताया गया है. सावन मास में पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि का भी श्रेष्ठ फल बताया गया है.
सावन की शिवरात्रि की पूजा ग्रहों की अशुभता को दूर करने में सक्षम है. जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या चल रही है. उन लोगों को आज के दिन भगवान शिव की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है. वहीं जिन लोगों की जन्म कुंडली में राहु और केतु अशुभ स्थिति में विराजमान हैं या फिर अशुभ फल प्रदान कर रहे हैं तो उनके लिए भी आज की पूजा शुभ है. भगवान शिव की पूजा करने से चंद्रमा की भी अशुभता दूर होती है.
कन्या राशि वाले इन मंत्रों से शिवजी को करें प्रसन्न
कन्या राशि वाले आज ग्रहों की अशुभता से बचने के लिए शिव चालीसा और शिव मंत्रों का जाप करें. इसके साथ ही भगवान शिव का अभिषेक करें. भगवान शिव के साथ शिव परिवार के सभी सदस्यों की भी पूजा करे औ उनकी प्रिय वस्तुओं का भोग लगाएं.
शिव मंत्र-
ॐ नम: शिवाय।
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनानत् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
रुद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि।
धनु राशि वाले शनि की अशुभता दू करें
धनु राशि पर इस समय शनि की साढ़ेसाती चल रही है. शनि की साढ़ेसाती जिस राशि पर होती है उस राशि के जातकों को संकटों और परेशानी का सामना करना पड़ता है. शनि अशुभ होने के कारण व्यक्ति को जीवन में तरह तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. धनहानि, अपयश, रोग और दुर्घटना जैसी दिक्कतें आती हैं. इसलिए इससे बचने के लिए आज के दिन ये करें.
पीपल के वृक्ष की पूजा करें. क्योंकि पीपल के वृक्ष में भगवान शिव का वास माना जाता है. मान्यता है कि वृक्ष के ऊपरी हिस्से में भगवान शिव का वास होता है. पीपल के वृक्ष में ही शनि देव भी विराजते हैं इसलिए पीपल की पूजा करने से शनि की अशुभता कम होती है. लिंग पुराण में बताया गया है कि शनिवार के दिन पीपल की पूजा करने से उम्र बढ़ती है.
शिव आरती (Shiva Aarti)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अद्र्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अद्र्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥