Sawan 2021: सावन में हुआ था समुद्र मंथन, जानिए इस माह क्यों जरूरी है शिव का जलाभिषेक
Sawan 2021: पौराणिक कथाओं के अनुसार सावन महीना शिवजी को प्रिय है. इस माह हुए समुद्र मंथन में निकला विष पीकर बेचैन भोलेनाथ के गले की ज्वाला शांत करने के लिए इस महीने उनका जलाभिषेक किया जाता है.
Sawan 2021: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावन महीने में ही देवों और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था. इसमें निकले विष के चलते जब पूरी सृष्टि संकट में आ गई तो महादेव ने उसे कंठ में धारण कर ब्रह्माण्ड को बचाया. मगर विष के चलते वह नीलकंठ हो गए और जहर की ज्वाला ने उन्हें बेचैन कर दिया. ऐसे में सभी देवी-देवताओं ने विष का असर घटाने के लिए शीतल जल से जलाभिषेक करना शुरू कर दिया था. यही कारण है कि सावन में जलाभिषेक का विशेष महत्व है.
इसलिए हुआ समुद्र मंथन
समुद्र मंथन की वजह को लेकर कई मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि धरती के निर्माण के लिए मंथन किया गया. मगर विष्णु पुराण अनुसार यह मंथन लक्ष्मीजी की खोज में किया गया. हालांकि दोनों ही कथाएं एक दूसरे की पूरक हैं. धरती निर्माण के लिए जिन चीजों की जरूरत थी, वह मंथन से मिलने वाली थीं और लक्ष्मीजी भी इस मंथन के बाद ही लौटीं, जिनके आने से देवताओं की श्री वापस आ सकीं. मंथन के दौरान भगवान विष्णु दो स्वरूप में मौजूद रहे. पहला मंदारचल पर्वत का वजन उठाने के लिए कच्छप अवतार तो दूसरा अमृत के लिए देवताओं और दानवों में होने वाले द्वंद के बीच मध्यस्थता के लिए मोहनी रूप में.
समुद्र मंथन के दौरान खुद वरुण देव असुरों के खेमे में शामिल थे. इस दौरान निकली मदिरा भी उनके ही नाम से वारूणी जानी जाती है. समुद्र मंथन में कुल चौदह रत्न निकले. सबसे पहले जहर, जिसे महादेव ने कंठ में धारण किया. मंथन से दिव्य गाय कामधेनु निकली, जिसे लोक कल्याण को ध्यान में रखकर गाय ऋषियों को दे दिया गया. तीसरा उच्चे:श्रवा घोड़ा, सात मुंह वाला यह सफेद अश्व राजा बलि के हिस्से में आया. मंथन से चार दांतों वाला हाथियों का राजा निकला, जिसे ऐरावत कहा गया. इसे देवराज इंद्र को दिया गया. कौस्तुभ मणि को विष्णुजी ने अपने मस्तक पर धारण किया. दुनिया का पहला धर्मग्रंथ माना गया कल्पदु्रम भी मंथन से निकला, जिसे संस्कृत की उत्पत्ति से जोड़ा जाता है. इसके अलावा कल्पवृक्ष या कल्पतरू भी समुद्र मंथन की ही देन है. इसे देवराज इंद्र ने सुरकानन में स्थापित किया.
स्कंदपुराण और विष्णुपुराण के अनुसार पारिजात ही कल्पवृक्ष है. इसी तरह अप्सरा रंभा और पारिजात पुष्प भी समुद्र मंथन से निकले. समुद्र मंथन में शंख भी निकला. जिसे विष्णु भगवान ने धारण किया. शंख को विजय, समृद्धि सुख-शांति, लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. चंद्रमा भी मंथन के दौरान निकला. इस वजह से इसे जल कारक ग्रह माना जाता है. उनकी प्रार्थना पर शिव ने इन्हें सिर पर धारण किया. आयुर्वेद के जनक धनवंतरि भी समुद्र मंथन से निकले थे. ये विष्णु अंश माने जाते हैं. सालों चले समुद्र मंथन के सबसे अंत में देवी लक्ष्मी अमृत कलश समेत समुद्र से बाहर आई थीं. जिनके आते ही देवताओं की श्री वापस आ गई थी.
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