Sawan 2022, Gopeshwar Mahadev: सावन का पवित्र महीना चल रहा है. शिव जी को प्रसन्न करने के लिए शिव भक्त उनके कई रूपों की पूजा करते हैं. सावन माह में न सिर्फ भोलेनाथ बल्कि श्रीकृष्ण की पूजा का भी विधान है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कान्हा नें वसंत के बाद इस माह में भी रासलीला की थी. कहते हैं कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे देवी-देवता भी मोहित हो जाते थे. शिव जी पौरुष का प्रतीक माने जाते हैं लेकिन क्या थी वो वजह जब भोलेनाथ को धारण करना पड़ा गोपी का रूप. आइए जानते हैं कैसे पड़ा भोलेनाथ का नाम गोपेश्वर.
शिव जी ने क्यों धरा गोपी का रूप
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक द्वापर युग में भगवान कृष्ण गोपियों के साथ रासलीला कर रहे थे. वहीं कैलाश पर्वत पर महादेव शंकर ध्यानमग्न थे, तभी श्रीकृष्ण की बांसुरी की मीठी धुन से उनका ध्यान भटक गया. बांसुरी की धुन सुनकर शिवजी को असीम आनंद प्राप्त हुआ. भोलेनाथ से रहा नहीं गया और वो इस रास का आनंद लेने के लिए वृंदावन की ओर चल पड़े.
रासलीला में जाने के लिए उत्सुक थे महादेव
रासलीला में भगवान कृष्ण के अलावा किसी और पुरुष का आना वर्जित था. इसी के चलते देवी यमुना ने शिव को जाने से रोक दिया. महादेव रास में जाने के लिए अति उत्सुक थे उन्होंने देवी यमुना से ही रासलीला में शामिल होने का उपाय पूछा. यमुना के कहे अनुसार शिव जी गोरी का रूप धारण कर लिया और पहुंच गए वृन्दावन.
ऐसे वृंदावन में विराजमान हुए गोपेश्वर महादेव
श्रीकृष्ण की बांसुरी की तान पर महादेव घूंघट लेकर नृत्य में शामिल हो गए.वह इतने मस्त होकर नृत्य कर रहे थे कि सारी सुधबुध खो बैठे. श्रीकृष्ण ने भोलेनाथ को पहचान लिया था उन्होंने मुस्कुराते हुए महादेव को गोपेश्वर नाम से पुकारा. महारास खत्म होने पर कृष्ण ने भोलेनाथ को ब्रज में इसी रूप में विराजमान होने का आग्रह किया तब से ही शिव जी गोपी के रूप में वृंदावन में निवास करते हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार गोपेश्वर महादेव की सबसे पहले राधा-कृष्ण ने पूजा की थी. मान्यता है कि पूजा के दौरान उनके उंगलियों के निशान शिवलिंग पर बन गए थे.
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