(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Sawan 2023: कौन हैं भगवान शिव के माता-पिता, जानिए शिवजी की जन्म कथा से जुड़े रहस्य
Sawan 2023: शिव के माता-पिता के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है. शिव महापुराण के प्रकरण के अनुसार, भगवान शिव की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) और पिता सदाशिव यानी काल ब्रह्मा हैं.
Sawan 2023: हिंदू धर्म का पावन और शिवजी का प्रिय माह सावन चल रहा है. सावन महीना शिव जी की पूजा-व्रत के लिए समर्पित है. इस माह शिवालयों और शिव मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है.
सावन माह को लेकर ऐसी मान्यता है कि, इस महीने भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ पृथ्वलोक पर वास करते हैं. शिव परिवार में हम शिवजी की पत्नी माता पार्वती,पुत्र कार्तिकेय व गणेश और पुत्री अशोक सुंदरी को ही जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि, देवों के देव महादेव के माता-पिता कौन थे.
दरअसल सदाशिव के जन्म और उनके माता-पिता से संबंध में बहुत कम लोगों को ही जानकारी है. शिव पुराण में शिवजी की जन्म कथा के बारे में बताया गया है. आइये जानते हैं आखिर कौन थे शिवजी के माता-पिता.
कौन थे शिवजी के माता-पिता?
श्रीमद्देवी महापुराण में शिवजी के माता-पिता का उल्लेख मिलता है. श्रीमद्देवी महापुराण के अनुसार, एक बार नारद जी ने अपने पिता ब्रह्माजी से पूछा किस सृष्टि का निर्माण किसने किया है. साथ ही उन्होंने पूछा कि, भगवान विष्णु, भगवान शिव और आपके पिता कौन हैं?
नारद जी के सवालों का जवाब देते हुए ब्रह्मा जी ने त्रिदेवों के जन्म और उनके माता-पिता के बारे में बताया. ब्रह्मा जी बोले कि, देवी दुर्गा और शिव स्वरूप ब्रह्मा के योग से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई है. यानी प्रकृति स्वरूप देवी दुर्गा ही हम तीनों की माता है और ब्रह्मा यानी काल सदाशिव हमारे पिता हैं.
शिवजी के माता-पिता के बारे में एक और उल्लेख मिलता है. इसके अनुसार, एक बार किसी बात को लेकर ब्रह्मा जी और विष्णु जी का किसी बात पर झगड़ा हो जाता है. तब ब्रह्मा जी विष्णु से कहते हैं, मैं तुम्हारा पिता हूं क्योंकि इस सृष्टि की उत्पत्ति मुझसे ही हुई है, मैं प्रजापिता हूं. तब विष्णु जी कहते हैं, मैं आपका पिता हूं, क्योंकि आप मेरी नाभि कमल से उत्पन्न हुए हैं.
ब्रह्मा-विष्णु के इस झगड़े को सनकर सदाशिव वहां पहुंचे और कहा, पुत्रों मैंने तुमको जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी कार्य दिए हैं. इसी तरह मैंने शिव और रुद्र को भी संहार और तिरोगति का कार्य दिया है. मेरे पांच मुख हैं- एक मुख से अकार (अ), दूसरे से उकार (उ), तीसरे मुख से मुकार (म), चौथे से बिंदु (.) और पांचवे से नाद (शब्द) प्रकट हुआ है. इन्हीं पांचों अववयों से एकीभूत होकर ‘ऊँ’ की उत्पत्ति हुई, जो मेरा मूल मंत्र है.
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