Kanwar Yatra 2024: कांवड़ यात्रा श्रावण मास (Sawan Month) में होती है जोकि भगवान शिव (Lord Shiva) जी को समर्पित है. कांवड़िया (शिव भक्त) अपने कंधे में गंगाजल (Gangajal) से भरा कांवड़ लेकर शिव मंदिर (Shiv Mandir) की ओर जाते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक (Jalabhishek) करते हैं.


देखा जाए तो इस पर्व को सबसे ज्यादा हमारे शुद्र भाई/बहन हर्षोल्लास से मनाते हैं, बाकी वर्ण भी इस पर्व को मनाते हैं लेकिन शुद्र भाई और बहन इसमें सबसे ज्यादा सक्रिय और प्रफुल्लित होकर मनाते हैं. आइये जानते हैं क्या कांवड़ यात्रा का वर्णन हमारे शास्त्रों में भी मिलता हैं?


कांवड़ यात्रा का वर्णन आनंद रामायण (Ananda Ramayana) सार कांड 10.183-186 में मिलता है–


आनंद रामायण सार कांड सर्ग क्रमांक 10.183–186


ममैतद्वचनं श्रुत्वा प्रसन्नो रघुनायकः।
जगाद स्नात्वा सेतुबंधे रामेशं परिपश्यति ॥१८३॥

संकल्प्प नियतो भूत्वा गृहीत्वा सेतुवालुकाम्।
करं डिकाभिर्यत्नेन गत्वा वाराणसीं शुमाम् ।।१८४।


क्षिप्त्वा तां बालुां त्यक्त्या वेण्यां बालुकरंडिकाम् ।
आनीय गंगासलिलं रामेशमभिषिच्य च ॥१८५॥


समुद्रे त्यक्ततद्भारो ब्रह्म प्राप्नोत्यसंशयम्।
संकल्पेन बिना गंगा रामेशं नागमिष्यति ॥१८६॥


अर्थ है- हे पार्वती! मेरे इस वचन को सुनकर श्रीराम (Shri Ram) हर्षित होकर बोले कि, जो मनुष्य सेतुबंध में स्नान करके रामेश्वर (Rameswaram) शिव का दर्शन करेंगे, फिर दृढ़ संकल्प से सेतु को बालुका को कांवड़ में रखकर प्रेम तथा यत्न से काशी में ले जाकर गंगा के प्रवाह में डालेंगे और उस कांवड़ को वहीं छोड़कर दूसरी कांवड़ के द्वारा गंगाजल लाकर उससे रामेश्वर का अभिषेक करेंगे, वहां उस कांवड़ को भी समुद्र में फेक्कर निःसंदेह ब्रह्मपद को प्राप्त होंगे. जबतक दृढ़ संकल्प न होगा, तब तक रामेश्वर आना न होगा.


कांवड़ कंधे पर ही क्यों रखते हैं सिर पर क्यों नहीं?


कांवड़ में गंगाजल भरा जाता है जोकि केवल शिव जी को ही चढ़ाया जा सकता है. यदि सिर पर कांवड़ रखेंगे तो ऐसा भी हो सकता है कि वह गंगाजल कांवड़िया के सिर पर टपके और मान्यताओं के अनुसार वह सारा गंगाजाल शिवलिंग पर ही अभिषिक्त हो.


यह पर्व ज्यादातर उत्तरी राज्यों में मनाया जाता है. लेकिन अब कई लोग इसे दक्षिण में भी मनाते हैं, क्योंकि इसकी शुरुआती संकल्पना तो रामेश्वर से ही शुरु हुई थी.


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