Pradosh Vrat 2021 : यूं तो हर प्रदोष व्रत हर माह में दो बार पड़ता है, लेकिन सावन में प्रदोष व्रत की खास महिमा और महत्व है. भगवान शिव को समर्पित इस व्रत को विधि-विधान से पूरा करने पर भोलेनाथ और मां गौरी की खास कृपा मिलती है. आइए जानते हैं सावन में प्रदोष व्रत की पूजा विधि और महत्ता.


भगवान शंकर से सबसे प्रिय महीने में भोले के भक्तों को उनकी विशेष पूजन फल का अवसर मिलता है.यह वो समय होता है, जब शिवशंभू पृथ्वी पर भ्रमण के लिए निकलते हैं. मान्यता है कि प्रदोष के दिन शिव अपने हर धाम में मौजूद रहकर भक्तों को श्रद्धा का प्रसाद देते हैं. इस लिए सावन माह में प्रदोष व्रत पूजन का सर्वाधिक महत्व माना जाता है.


व्रत तिथि
कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत गुरुवार पांच अगस्त को पड़ रहा है, इसलिए इसे गुरु प्रदोष व्रत भी कहा जाएगा. इसलिए आने वाले 14 दिन इन राशियों के लिए शुभ रहेंगे. इस दौरान शुक्र देव की कृपा से दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ेगा.


मुहूर्त 
श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी का आरंभ : पांच अगस्त की शाम 05:09 बजे से
श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी का समापन : छह अगस्त की शाम 06:28 बजे.  
प्रदोष काल शाम 07:09 बजे से रात 09:16 बजे तक 


प्रदोष काल
प्रदोष व्रत के दौरान पूजापाठ प्रदोष काल में ही करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. प्रदोष काल संध्या के समय सूर्यास्त से करीब 45 मिनट पहले शुरू हो जाता है. कहा जाता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.


 


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