(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Sawan Purnima 2024: सावन पूर्णिमा का दिन है बेहद शुभ, रक्षाबंधन समेत मनाए जाएंगे हरग्रीव जयंती और उपाकर्म जैसे पर्व
Sawan Purnima 2024: हिंदू धर्म (Hindu Dharm) में सावन पूर्णिमा के दिन को सबसे पवित्र मना जाता है. क्योंकि इस दिन रक्षाबंधन (Raksha Bandhan), हयग्रीव यंती और उपा-कर्म जैसे तीन पर्व एक साथ होते हैं.
Sawan Purnima 2024: सावन पूर्णिमा के दिन आमतौर पर लोगों को केवल रक्षाबंधन पर्व (Raksha Bandhan festival) के बारे में पता होता है, लेकिन इस दिन हयग्रीव जयंती (Hayagriva Jayanti 2024) और उपा–कर्म (यज्ञोपवीत बदलने) का पर्व भी पड़ता है. आइए देखते है हमारे प्राचीन दिव्य ग्रंथ क्या कहते हैं.
स्कंद पुराण श्रावण माहात्म्य अध्याय क्रमांक 21 अनुसार, इस श्रावण मास में पूर्णिमा तिथि को उत्सर्जन तथा उपाकर्म (Upakarma) सम्पन्न होते हैं. पौष की पूर्णिमा तथा माघ की पूर्णिमा तिथि उत्सर्जन कृत्य के लिए होती है अथवा उत्सर्जन कृत्य हेतु पौष की प्रतिपदा अथवा माघ की प्रतिपदा तिथि विहित है अथवा रोहिणी नामक नक्षत्र उत्सर्जन कृत्य के लिए प्रशस्त होता है अथवा अन्य कालों में भी अपनी-अपनी शाखा के अनुसार उत्सर्जन तथा उपाकर्म-दोनों का साथ-साथ करना उचित माना गया है.
अतः श्रावण मास की पूर्णिमा को उत्सर्जन-कृत्य प्रशस्त होता है. साथ ही ऋग्वेदियों के लिए उपाकर्म हेतु श्रवण नक्षत्र होना चाहिए. चतुर्दशी, पूर्णिमा अथवा प्रतिपदा तिथियों में जिस दिन श्रवण नक्षत्र हो, उसी दिन ऋग्वेदियों को उपाकर्म करना चाहिए. यजुर्वेदियों का उपाकर्म पूर्णिमा में और सामवेदियों का उपाकर्म हस्तनक्षत्र में होना चाहिए. शुक्र तथा गुरु के अस्तकाल में भी सुखपूर्वक उपाकर्म करना चाहिए, किंतु इस काल में इसका आरम्भ पहले नहीं होना चाहिए, ऐसा शास्त्रविदों का मत है.
ग्रहण तथा संक्रान्ति से दूषित काल के अनन्तर ही इसे करना चाहिए. हस्त नक्षत्र युक्त पंचमी तिथि में अथवा भाद्रपद पूर्णिमा तिथि में उपाकर्म करें, अपने-अपने गृह्यसूत्र के अनुसार उत्सर्जन तथा उपाकर्म करें. अधिकमास आने पर इसे शुद्धमास में करना चाहिए. ये दोनों कर्म आवश्यक हैं, अतः प्रत्येक वर्ष इन्हें नियमपूर्वक करना चाहिए.
उपाकर्म की समाप्ति पर द्विजातियों के विद्यमान रहने पर स्त्रियों को सभा में सभादीप निवेदन करना चाहिए. उस दीपक को आचार्य ग्रहण करे या किसी अन्य ब्राह्मण को प्रदान कर दें. दीप की विधि बतायी जाती है- सुवर्ण, चांदी अथवा तांबे के पात्र में सेरभर गेहूं भरकर गेहूं के आटे का दीपक बनाकर उसमें उस दीपक को जलाएं. वह दीपक घी से अथवा तेल से भरा हो और तीन बत्तियों से युक्त हो, दक्षिणा तथा ताम्बूलसहित उस दीपक को ब्राह्मण को अर्पण कर दें. दीपक की तथा विप्र की विधिवत् पूजा करके यह मन्त्र बोले-
"सदक्षिणः सताम्बूलः सभादीपोऽयमुत्तमः। अर्पितो देवदेवस्य मम सन्तु मनोरथाः॥"
अर्थ है: दक्षिणा तथा ताम्बूल से युक्त यह उत्तम सभादीप मैंने देव को निवेदित किया है, मेरे मनोरथ पूर्ण हों.
सावन पूर्णिमा के दिन हयग्रीव जयंती (Hayagriva Jayanti on sawan purnima 2024)
हयग्रीव का अवतार (Hayagriva avatar) उसी तिथि में कहा गया है, अतः इस तिथि पर हयग्रीव जयन्ती का महोत्सव मनाना चाहिए. उनकी उपासना करने वालों के लिए यह उत्सव नित्य करना बताया गया है. श्रावण पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र में भगवान श्री हरि (Lord Vishnu) हयग्रीव के रूप में प्रकट हुए और सर्व प्रथम उन्होंने सभी पापों का नाश करने वाले सामवेद का गान किया.
इन्होंने सिन्धू और वितस्ता नदियों के संगम स्थान में श्रवण नक्षत्र में जन्म लिया था. अतः श्रावणी के दिन वहां स्नान करना सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला होता है. उस दिन वहां शार्ङ्ग–धनुष, चक्र तथा गदा धारण करने वाले विष्णु जी की विधिवत् पूजा करें. इसके बाद सामगान का श्रवण करें. अपने-अपने देश में तथा घर में भी इस महोत्सव को मनाना चाहिए और हयग्रीव की पूजा करनी चाहिए तथा उनके मन्त्र का जप करना चाहिए, उस मन्त्र को सुनिए.
आदि में 'प्रणव' तथा उसके बाद 'नमः' शब्द लगाकर बाद में 'भगवते धर्माय' जोड़कर उसके भी बाद 'आत्मविशोधन' शब्द की चतुर्थी विभक्ति (आत्मविशोधनाय) लगानी चाहिए. पुनः अन्त में 'नमः' शब्द प्रयुक्त करने से अठारह अक्षरों वाला (ॐ नमो भगवते धर्माय आत्मविशोधनाय नमः) मंत्र बनता है. यह मन्त्र सभी सिद्धियां प्रदान करने वाला और छः प्रयोगों को सिद्ध करने वाला है.
कलियुग (Kaljug) में इसका पुरश्चरण इससे भी चार गुने जप से होना चाहिए. इस प्रकार करने पर हयग्रीव प्रसन्न होकर उत्तम वांछित फल प्रदान करते हैं. इसी पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन भी मनाया जाता है, जो सभी रोगों को दूर करने वाला तथा सभी अशुभों का नाश करने वाला हैं.
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