Sawan Somvaar Vrat Katha: सावन के महीने में जरुर करें सावन सोमवार की व्रत कथा, भोलेनाथ करेंगे हर कामना पूर्ण
Sawan Somvar Vrat Katha: सावन में शिव भक्ति को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इस साल सावन 4 जुलाई से शुरु हो रहें है. सावन का पहला सोमवार 9 जुलाई को पड़ेगा. सावन के सोमवार पर जरुर करें ये व्रत कथा.
Sawan Somvar Vrat Katha: सावन का पवित्र महीना 4 जुलाई से शुरु होने वाला है. सावन का पहला सोमवार 9 जुलाई को पड़ेगा. ऐसा माना गया है कि सावन के महीने में सावन सोमवार का व्रत रख कर अगर सावन सोमवार की कथा की जाए तो इससे सभी दुखों का अंत होता है, और भोलेनाथ अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं. तो आप भी सावन के हर सोमवार अपने मन में भोलेनाथ का नाम लेकर इस पावन कथा को जरुर करें, भगवान शिव की कृपा आप पर हमेशा बनी रहेगी.
सावन सोमवार व्रत कथा (Sawan Somvar Vrat Katha)
एक बार एक साहूकार भगवान भोलेनाथ का बहुत बड़ा भक्त था. उसके पास बहुत पैसा था लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी. वो हर रोज भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता और शिव जी के समक्ष रोज दीपक भी जलाता. साहूकार की केवल यहीं इच्छा थी कि उसके घर संतान हो. साहूकार की भक्ति देखकर मां पर्वती ने भोलेनाथ को कहा आपका ये भक्त दुखी है आपको इसकी इच्छा पूरी करनी चहिए. भोलेनाथ ने मां पार्वती को बताया इसके पास पुत्र नहीं है, और यहीं इसका दुख है.
मां पार्वती के कहने पर भोलेनाथ ने मां पार्वती को बताया कि साहूकार के भाग्य में पुत्र योग नहीं है. अगर साहूकार को पुत्र का वारदान मिल भी गया तो उसका पुत्र केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा.
साहूकार ये सभी बातें सुन रहा था. साहूकार को ना खुशी हुआ ना गम. वो पहले की तरह पूजा-पाठ करता रहा. एक दिन उसकी पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया. उसके परिवार में जश्न का माहौल था. लेकिन साहूकार पहले की तरह ना खुश था ना दुखी.
11 साल की उम्र में साहूकार ने अपने बालक को उसके मामा के साथ शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी भेज दिया, साहूकार ने अपने साले को बोला रास्ते में ब्राह्मण को भोज भी करा दें. काशी के रास्ते में एक राजकुमारी का विवाह हो रहा था, जिसका दुल्हा एक आंख से काना था. तो उसके पिता ने जब अति सुंदर साहूकार के बेटे को देखा तो उनके मन में आया कि क्यों न इसे ही घोड़ी पर बिठाकर शादी के सारे कार्य संपन्न करा लिये जाएं. जब विवाह संपन्न हो गया तो जाने से पहले साहूकार के बेटे ने राजकुमारी की चुंदरी के पल्ले पर लिखा कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ लेकिन जिस राजकुमार के साथ भेजेंगे वह तो एक आंख का काना है. इसके बाद साहूकार का बेटा काशी पहुंच गया. राजकुमारी काने के साथ नहीं विदा हुई.
एक दिन काशी में यज्ञ के दौरान भांजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया तो मामा ने अंदर जाकर देखा तो भांजे के प्राण निकल चुके थे. मामा ने रोना-पीटना मचाया. उसी वक्त वहां से शिव-पार्वती जा रहे थे तो माता पार्वती ने शिवजी से पूछा हे प्रभु ये कौन रो रहा है? तभी उन्हें पता चलता है कि यह तो भोलेनाथ के आर्शीवाद से जन्मा साहूकार का पुत्र है. तब माता पार्वती ने कहा स्वामी इसे जीवित कर दें अन्यथा रोते-रोते इसके माता-पिता के प्राण निकल जाएंगे. तब भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी सो वह भोग चुका है.
लेकिन मां के बार-बार कहने पर भोलेनाथ ने उसे जीवित कर दिया. लड़का ओम नम: शिवाय करते हुए जी उठा और मामा-भांजे दोनों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया, और अपनी नगरी की ओर लौटे. रास्ते में वही नगर पड़ा और राजकुमारी ने उन्हें पहचान लिया तब राजा ने राजकुमारी को साहूकार के बेटे के साथ बहुत सारे धन-धान्य के साथ विदा किया. इसके बाद वो अपने गांव पहुंचे जहां साहूकार अपने बेटे और बहु को देख कर बहुत खुश हुआ. उसी रात साहूकार को स्वप्न ने शिवजी ने दर्शन दिया और कहा कि तुम्हारे पूजन से मैं प्रसन्न हुआ. इसी प्रकार जो भी व्यक्ति इस कथा को पढ़ेगा या सुनेगा उसके समस्त दु:ख दूर हो जाएंगे और मनोवांछित सभी कामनाओं की पूर्ति होगी.
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