Sawan Somvar Vrat Importance and Benefits: सभी ऋतुओं में बसंत यदि तन-मन को ऊर्जस्वित करने का मौसम है तो सभी माहों में सावन माह देवाधिदेव शिव को अतिप्रिय, व्रत आदि द्वारा उन्हें प्रसन्न करने, साथ ही स्त्रियों को हर्षित होने, गीतों, उछाहों से झूलों पर झूमने का माह है.


यही कारण है कि सावन माह में छोटे-बड़े असंख्य शिव मंदिरों व शिवालयों में शंख, घंटियों के बजने, ‘बम-बम भोले‘ ‘हर-हर महादेव‘ ‘जय शिव शंभू‘ आदि जयकारों के गूंजने से पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है. यदि इस माह के सभी सोमवार और विशेषतः सोलह सोमवारों को शिव की उपासना, व्रत आदि किए जाएं तो शिव की प्रसन्नता और उनकी कृपा से व्यक्ति को कोई भी ग्रह बाधा, कष्ट, आपदा आदि दुष्प्रभावित नहीं कर सकते. 


सावन माह का महत्व


सभी देवों में शिव जैसा कोई महादेव नहीं कि जिनके मूर्त रूप को गंगाजल, तीर्थराज पुष्कर या किसी पवित्र नदी जलाशय के जल को अर्पित करने के लिए इस वर्ष सावन माह में हजारों कावड़िये नंगे पांव यात्रा करें, हर नगर, हर डगर शिव के जयकारों से ध्वनित हो. जो सभी देवों में एकमात्र काल से बड़ा महाकाल, महा-देव हो, जो सर्वाधिक, शक्तिमान, सर्वाधिक समर्थ, अपने साधक-भक्त को सभी आपदाओं, ग्रहों के कष्ट कारक दुष्प्रभावों से रक्षित रखने में समर्थ हो. जिसकी पूजा-अर्चना, वंदना आदि के लिए बारहों माहों में विशेष सावन माह में असंख्य लोग शिव मंदिरों में उमड़ते हों, जो देवी रूपा महाशक्ति के साथ अर्धनारीश्वर रूप में भी शोभित हों, जो सदैव एक वृक्ष के नीचे, पाषाण खण्ड पर ध्यान मग्न रहते हों, उसी पर शयन-विश्राम करते हों, आदि आदि. इन्हीं का प्रिय सावन माह इस साल मंगलवार 4 जुलाई को शुरू हो रहा है. 


सावन सोमवार व्रत महत्व और पूजा विधि


सावन मास में ही सोमवार को शिव की प्रसन्नता के लिए किये जाने वाले व्रत में शिव की पूजा का विशेष विधान है. ये व्रत शुभदायी, वांछित कामनाओं को पूरा करने वाले हैं. इस व्रत की विधा में शिव की पूजा तथा एक ही समय भोजन किया जाता है. पूजा में मुख्यतः शिव तथा माता पार्वती का ध्यान करने के साथ शिव के पंचाक्षर मंत्र ‘ऊँ नमः शिवाय‘ का जाप जितना सम्भव हो करें. पूजा में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद्, पंचामृत, कलावा, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, रोली, चावल, फूल, बिल्वपत्र, दूर्वा, विजया, आक, धतूरा, कमलगट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप, दक्षिणा सहित पूजा करने का विधान है. साथ ही कपूर से आरती कर भजन-कीर्तन, रात्रि जागरण भी करना चाहिए.


सावन में पार्थिव शिव पूजा का महत्व


बता दें कि सावन महीने में पार्थिव शिव पूजा का विशेष महत्व है. सभी सोमवार और प्रदोष को शिवपूजा या पार्थिव शिवपूजा अवश्य करनी चाहिए. व्रत में प्रातः गंगास्नान अन्यथा किसी पवित्र नदी या सरोवर में अथवा विधिपूर्वक घर पर ही स्नान कर शिवमंदिर में जाकर स्थापित शिवलिंग का या अपने घर में पार्थिव मूर्ति बनाकर यथाविधि षोडशोपचार-पूजन किया जाता है. यथासम्भव विद्वान् ब्राह्मण से रुद्राभिषेक भी कराना चाहिये. इस व्रत में श्रावणमाहात्म्य, श्रीशिवमहापुराण की कथा सुनने का विशेष महत्व है. इस मास में लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ कराने का भी विधान है.


सावन के प्रत्येक सोमवार को शिवजी के साथ ही पूरे शिवपरिवार जैसे श्री गणेश, शिव, पार्वती और नन्दी की पूजा करने का विधान भी है. कई शिव भक्त तो सावन माह के सभी दिनों में शिव की पूजा-आराधना, व्रत करते हैं, उत्सव मनाते हैं तो कई लोग सावन में सोमवार के दिन व्रत करते हैं. इस सबसे साधक-साधिका को पुत्र, धन, विधा आदि की प्राप्ति होती है. लेकिन यह श्रद्धा, विश्वास, भक्ति-साधना के प्रति दृढ़ता, निर्मलता पर निर्भर है. इस व्रत में भक्त शिव के लिए सोमवार को सामान्य व्रत करने के स्थान पर किसी विशिष्ट प्रयोजन, विशेष कामना पूरी हो जाने के लिए अब सोलह सोमवारों के व्रत विशेष के बारे में जानें. जो सावन, कार्तिक, माघ या वैशाख माह के किसी भी सोमवार से प्रारंभ किया जा सकता है.


सोलह सोमवार व्रत


जैसाकि इसके लिए व्रत आदि विद्या में बताया गया है कि व्रत के दिन प्रातः नित्यक्रिया स्नानादि से निवृत होकर, शुद्ध वस्त्र धारण कर, बिल्वपत्र, रोली, चावल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, शहद्, जनेऊ, धतूरे का फल और फूल, आक का फल तथा फूल, कमलगट्टा, भांग, दीपक, बिल्वफल आदि से शिव का पूजन करना चाहिए. सवा किलो चूरमा बनाकर शिव को भोग लगाएं. सवा पाव शिव के लिए भोग के रूप में मंदिर में छोड़ दें. सवा पाव स्वयं खाएं, शेष को प्रसाद के रूप में वितरित करें. व्रत के दिन एक बार ही चूरमे का प्रसाद और फलाहार लें. दूसरे दिन के लिए कुछ भी बचाकर न रखा जाए. इसके बाद सोलह सोमवार के व्रत की कथा पढ़ें या सुनें. रात्रि में शिव की प्रतिमा के पास ही सोएं.


इस बात का विशेष ध्यान रखें कि, सोलहों सोमवारों को शिव की एक ही प्रतिमा की पूजा करें. प्रतिमा को बदले नहीं. पूजा स्थान को स्वच्छ और पवित्र रखें. साथ ही खुद के अलावा किसी अन्य को प्रतिमा से कुछ दूर ही रखें और अन्य का उसे स्पर्श भी न होने दें. सोलहवें सोमवार को व्रत का उद्यापन के दिन रात्रि जागरण भी करें और सवा पांच किलो का चूरमा बनाकर शिव पर चढ़ाएं. सवा पाव स्वयं ग्रहण करें और शेष प्रसाद रूप में वितरित कर दें. उचित होगा कि सोलहों सोमवारों की व्रत विधा आदि में विद्वान, अनुभवी पंडित से सहयोग के करें.


ये भी पढ़ें: Shani Pradosh Vrat 2023: शनि प्रदोष व्रत कब ? शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति पाने के लिए ऐसे करें पूजा



Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.