Shanshchrai Amavasya 2021: हिंदू धर्म में हर व्रत, त्योहार और पूजा-पाठ का विशेष महत्व. हर माह पड़ने वाली अमावस्या और पूर्णिमा के दिन खास उपाय किए जाते हैं. हर महीने के कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन अमावस्या होती है. मार्गशीर्ष माह (Margashirsh Month) की कृष्ण पक्ष की अमावस्या 4 दिसंबर, शनिवार के दिन पड़ रही है. सोमवार, मंगलवार और शनिवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या को शनैश्चरी अमावस्या (Shani Amavasya 2021) कहा जाता है.


इस बार शनैश्चरी अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण भी पड़ रहा है. साल 2021 का ये आखिरी सूर्य ग्रहण (Surya Grahan 2021) होगा. हालांकि, भारत में ये सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा और इसी कारण यहां सूतक भी मान्य नहीं होगा. लेकिन सूर्य ग्रहण के दौरान व्यक्ति के ग्रहों पर प्रभाव पड़ते हैं. इसके लिए इस दौरान कुछ उपायों को करने से दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है. 


इस बार सूर्य ग्रहण 10 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगा और दोपहर के 3 बजकर 7 मिनट पर समाप्त होगा. मान्यता है कि इस दिन जप, तप और दान आदि करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं. धार्मिक दृष्टि से शनि अमावस्या के दिन दान आदि से जीवन में दुख, संकट, दरिद्रता आदि समस्याओं का नाश होता है. इतना ही नहीं, पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. कहते हैं कि जिन जातकों पर साढ़े साती या शनि ढैय्या चल रही है, उन्हें इस दिन शनि स्त्रोत (Shani Stotra) का जाप करना चाहिए. ऐसा करने से उनके समस्त समस्याओं का नाश हो जाता है. 


शनैश्चरी अमावस्या के दिन करें शनि स्त्रोत


 शनि स्त्रोत


नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।


नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।


नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।


नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।


नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।


नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।


नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।


नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।


नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।


सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।


अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।


नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।


तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।


नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।


ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।


तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।


देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।


त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।


प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।


एवं स्तुतस्तद सौरिग्रहराजो महाबल:।। 


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