Shani Dev: हिंदू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है. इस दिन शनिदेव की विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना करने और सरसों का तेल अर्पित करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि शनि देव बहुत ही क्रोधी स्वभाव के हैं. शनि देव को न्यायधीश के नाम से भी जाना जाता है. व्यक्ति ही नहीं देवता भी शनि देव से डरते हैं. शनि देव ही व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार फल देते हैं.
शनिदेव को लेकर कहते हैं कि शनिदेव की कुदृष्टि से हर कोई डरता है. शनि देव की कृपा बनाए रखने के लिए भक्ते शनिवार के दिन विधि-विधान से उनकी पूजा अर्चना करते हैं. लेकिन कुछ ऐसे देवी-देवता हैं जिनसे शनिदेव भी डरते हैं. शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति इन देवी-देवताओं की पूजा करते हैं उनके ऊपर शनिदेव कभी अपनी वक्रदृष्टि नहीं डालते. आइए जानते हैं इन देवी-देवता के बारे में.
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पीपल का वृक्ष
पौराणिक कथा के मुताबिक, ऋषि पिप्लाद के माता-पिता की मृत्यु बचपन में हो गई थी. बड़े होने पर उन्हें पता चला कि शनि की दशा के कारण उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी. इस बात से पिप्लाद को काफी गुस्सा आया. फिर उन्होंने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तप किया. और पीपल के पत्तों का सेवन किया. पिप्लाद की तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा, तो पिप्लाद ने ब्रह्मदंड मांगा. इसके बाद पीपल के पेड़ पर बैठे शनिदेव पर ब्रह्मदंड से प्रहार किया. ऐसा करने से शनिदेव के पैर टूट गए. शनिदेव ने कष्ट के समय भगवान शिव को पुकारा और उन्होंने आकर पिप्लाद का क्रोध शांत किया. साथ ही, शनिदेव की रक्षा की. तभी से शनि पिप्लाद से भय खाने लगे.
हनुमान जी
धार्मिक कथा के अनुसार शनिदेव को रावण की कैद से मुक्ति हनुमान जी ने दिलाई थी. उस समय शनिदेव ने हनुमान जी को वचन दिया था कि वह कभी भी उनके ऊपर अपनी दृष्टि नहीं डालेंगे. लेकिन धीरे-धीरे वे अपने इस वचन को भूल गए. और हनुमान जी को साढ़े साती का कष्ट देने पहुंच गए. ऐसे में हनुमान जी ने शनिदेव को अपने सिर पर बैठने की जगह दी. हनुमान जी की कहने के बाद शनिदेव उनके सिर पर बैठ गए. जैसे ही शनिदेव बैठे वैसे ही उन्होंने एक भारी-भरकम पर्वत उठाकर अपने सिर के ऊपर रख लिया. पर्वत के भार से दबकर शनिदेव जोर-जोर से कराहने लगे और हनुमान जी से क्षमा मांगी. जब शनिदेव ने उन्हें ये वचन दिया कि वे हनुमान जी के भक्तों को कभी नहीं सताएंगे, तब हनुमान जी ने उन्हें उतारा.
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भगवान शिव
ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान शिव ने शनिदेव को कर्म दंडाधिकारी का पद दिया था. पित सूर्य देव ने पुत्रों की योग्यतानुसार उन्हें विभिन्न लोको का अधिपत्य प्रदान किया लेकिन पिता की आज्ञा की अवहेलना करते हुए शनिदेव ने दूसरे लोकों पर भी कब्जा कर लिया. ऐसे में सूर्यदेव ने भगवान शिव से ये निवेदन किया कि वह शनि देव को सही राह दिखाएं.
सूर्यदेव के कहे अनुसार भगवान शिव ने अपने गणों को शनिदेव से युद्ध करने भेजा. लेकिन शनिदेव ने सभी को परास्त कर दिया. इसके बाद विवश होकर भगवान शिव को ही शनिदेव से युद्ध करने के लिए आना पड़ा. इस युद्ध में शनिदेव ने भगवान शिव पर मारक दृष्टि डाली. जिसके बाद महादेव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर शनि और उनके सभी लोकों को नष्ट कर दिया.
पत्नी चित्ररथ
पौराणिक कथा में बताया गया है कि शनिदेव को अपनी पत्नी चित्ररथ से भी भय है. भगवान शनि का विवाह चित्ररथ के साथ हुआ था. एक दिन चित्ररथ पुत्र की प्राप्ति की इच्छा लेकर शनिदेव के पास पहुंचीं लेकिन उस समय वह श्रीकृष्ण की भक्ति में मग्न थे. शनि देव का काफी समय तक इंतजार करने के बाद जब चित्ररथ थक गईं तो उन्होंने अंत में क्रोधित होकर शनिदेव को शाप दे दिया.
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