Mahima Shanidev Ki: देवविश्वकर्मा के भवन पर चक्रवात के हमले में घायल पत्नी संध्या यानी छाया के दोषी की तलाश सूर्यदेव ने शुरू कराई. इस क्रम में एक दिन उन्होंने देवराज इंद्र से पूछा तो उन्होंने इसके लिए दैत्यगुरु शुक्राचार्य को चक्रवात का निर्माता बताते हुए सीधे तौर पर दोषी ठहरा दिया.


इसके बाद गुस्से से तमतमाए सूर्यदेव ने शुक्राचार्य को भस्म करने देने की चेतावनी दी तो शुक्राचार्य ने इसके लिए इंद्र को जिम्मेदार ठहराया. इसके बावजूद सूर्य ने इसे शुक्राचार्य का इंद्र पर गलत आरोप लगाते हुए अपनी गलती नहीं मानने का दोषी करार दिया और तत्काल भस्म कर देने की चेतावनी दी. ऐसे में न्यायकर्ता शनि ने वहां पहुंचकर पिता का विरोध जताया. कर्मफलदाता शनि ने पिता सूर्यदेव को शुक्राचार्य को दोषी सिद्ध करने से पहले उन्हें खुद को निर्दोष साबित करने का मौका देने को कहा. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक शनिदेव ने यहां पिता सूर्यदेव को निष्पक्ष न्याय के सिद्धांत भी बताए.


- न्याय का अर्थ अनर्थ रोकना है, ऐसे में हर किसी को इसका अवसर मिलना ही चाहिए.
- न्याय प्रक्रिया के दौरान किसी भी साक्षी की आयु का महत्व नहीं है. स्वस्थ मानसिक स्थिति का कोई भी साक्षी की बात मान्य होनी चाहिए.
- न्याय की गति धीमी हो सकती है क्योंकि निष्पक्ष न्याय का सबसे बड़ा सिद्धांत यही है कि दोषी बचे न बचे, किसी से अन्याय न होने पाए.
- न्यायकर्ता अगर स्वयं सत्य पहचान नहीं कर सकता है तो न वह प्राण लेने के अधिकारी है, न आरोपी प्राण देने के दोषी.
- आरोपी को खुद को निर्दोष साबित करने का अंत तक अधिकार देना जरूरी है.


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