Mahima Shanidev ki : महादेव के बताए गए शक्तिपुंज शनिदेव ही हैं, इसकी पुष्टि के लिए देवराज इंद्र ने दैत्यगुरु शुक्राचार्य को उकसा कर चक्रवात को उत्पन्न कराया और भगवान विश्वकर्मा के महल पर आक्रमण कराया, लेकिन जब दोषी पहचाने का अवसर आया तो इंद्रदेव ने सूर्यदेव के समक्ष खुद को निर्दोष बताते हुए चक्रवात का निर्माण करने वाले शुक्राचार्य को दोषी ठहरा दिया. न्यायकर्ता शनि ने न्यायसभा में अंतिम समय में पहुंचकर असली दोषी का पर्दाफाश करते हुए तथ्यों के नए सिरे से अवलोकन के बाद इंद्र को ही चक्रवात के लिए दोषी सिद्ध कर दिया, परिणामस्वरूप इंद्रदेव को सजा भुगतनी पड़ी.


शुक्राचार्य ने संकट में लगाई थी शनिदेव की गुहार 
सूर्यलोक में जब देवताओं से घिरे दैत्यगुरु शुक्राचार्य को चक्रवात उत्पन्न करने और मां छाया पर आक्रमण का दोषी ठहरा दिया गया तो उन्होंने निष्पक्ष न्याय के लिए शनिदेव का आवाहन किया. ऐसे में भला न्यायकर्ता कहां रुक सकते थे, मां से अनुमति लेकर शनिदेव वहां पहुंच गए. तब तक साक्षी के तौर पर इंद्र, विश्वकर्मा अपनी बात रख चुके थे, ऐसे में साक्षी के तौर पर शनिदेव ने अपनी बात रखी. 


पंचमहाभूतों से सवाल, इंद्र पर कसा जाल
न्याय सभा में शनिदेव ने किसी भी सृजन के लिए जरूरी पांच तत्वों के देवताओं यानी पंच महाभूतों से पूछा कि आखिर उन्होंने शुक्राचार्य को चक्रवात दानव का सृजन करते हुए क्यों रोका नहीं और खुद इंद्र ने देवराज होते हुए पंचमहाभूतों के इस सृजन का विरोध नहीं किया. इतना ही नहीं, खुद देवगुरु बृहस्पति को शिष्यों के गुण का पता है तो उन्होंने इस कृत्य की जानकारी क्यों नहीं रखी. ऐसे में सिद्ध होता है कि इंद्र को चक्रवात की उत्पति का कारण और निवारण दोनों ही ज्ञात रहा होगा, फिर भी विश्वकर्मा महल पर चक्रवात के आक्रमण के समय मौजूद रहने के बावजूद इंद्र ने इसका विरोध नहीं किया. ऐसे में चक्रवात की उत्पत्ति के लिए असुर नहीं बल्कि देवता ही जिम्मेदार हैं. ऐसे में उनका राजा होने के नाते यह दोष देवराज इंद्र का बनता है. यह सुनकर सभा में मौजूद हर कोई न्यायकर्ता के तर्कों और साक्ष्यों के आधार पर दिए गए इस निष्पक्ष न्याय का सराहना करने लगा. इस तरह सूर्यदेव के ताप से भस्म होने की कगार पर पहुंच चुके  शुक्राचार्य को न्याय मिला.


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