Shani Dev: धार्मिक मान्यता और पौराणिक कथाओं के अनुसार शनिदेव को दंडाधिकारी माना जाता है. क्योंकि शनिदेव व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं. इसलिए कहा जाता है कि, जिस व्यक्ति पर शनि की टेढ़ी नजर पड़ जाए वह राजा से रंक बन जाता है, वहीं जिस पर शनि देव की कृपा बरस जाए उसके जीवन का कल्याण हो जाता है.


कहा जाता है कि देवों के देव महादेव भी शनिदेव के प्रकोप से बच नहीं पाए थे और इसी कारण शनिदेव को शिवजी ने दंडाधिकारी नियुक्त किया था. इसके बाद से ही शनिदेव के पास सभी लोगों के कर्मों का लेखाजोखा होता है और वे उसी के अनुरूप सजा देते हैं, जिस कारण लोगों पर साढ़ेसाती और ढैय्या चलती है. जानते हैं शनिदेव के दंडाधिकारी बनने की यह कहानी.


शनि देव कैसे बनें दंडाधिकारी


धार्मिक कथाओं के अनुसार, शिवजी शनि देव के गुरु हैं और शनिदेव को न्याय करने व दंड देने की शक्ति भगवान शिव के आशीर्वाद से ही प्राप्त हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्यदेव के पुत्र शनिदेव को सभी ग्रहों में क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है. क्योंकि शनिदेव बचपन से ही उद्दंड थे. एक बार सूर्य देव शनि की उद्दंडता से परेशान होकर शिवजी के पास पहुंचे और शनि को सही मार्ग दिखाने को कहा. लेकिन भगवान शिव के प्रयास के बाद भी शनिदेव की उद्दंडता में कोई परिवर्तन नहीं आया.


तब एक दिन शिवजी ने शनिदेव को सबक सिखाने के लिए उनपर प्रहार कर दिया, जिससे शनि देव मूर्छित हो गए. लेकिन पिता सूर्य देव से शनि को यूं मूर्छित देखा न गया और उन्होंने शिवजी से शनिदेव की मूर्छा तोड़ने को कही. इसके बाद शविजी ने शनिदेव की मूर्छा तोड़ी और उन्हें अपना शिष्य बना लिया. शिवजी का शिष्य बनने के बाद शनि न्याय और दंड के कार्यों में शिवजी का सहयोग करने लगे.


शनि की दृष्टि से जब महादेव भी बच नहीं सके


पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन शनिदेव अपने गुरु शिवजी से भेंट करने कैलाश पर्वत पहुंचे और कहा- प्रभु! मैं कल आपकी राशि में प्रवेश करूंगा, जिससे कि मेरी वक्रदृष्टि आपपर रहेगी. यह सुनते ही शिवजी आश्चर्य में पड़ गए और कहने लगे कि तुम्हारी वक्रदृष्टि कितने समय के लिए मुझपर होगी? शनिदेव बोले, कल मेरी वक्रदृष्टि आप पर तीन प्रहर तक रहेगी.


अगले दिन शिव जी ने सोचा कि शनि की वक्रदृष्टि मुझपर पड़ने वाली है इसलिए मुझे आज शनि की दृष्टि से बचना होगा. शनि की दृष्टि से बचने के लिए शिवजी धरती लोक पर कोकिला वन में हाथी का भेष बदलकर विचरण करने लगे.


पूरे दिन इसी तरह से हाथी का रूप धारण कर धरती पर विचरण करने के बाद जब शाम हुई तो शिवजी ने सोचा कि अब तीन पहर बीतने वाले हैं और शनि  मेरी राशि से निकलने वाला है, इसलिए मैं अब अपने वास्तविक स्वरूप में वापस कैलाश जा सकता हूं. लेकिन कैलाश पर्वत पर पहले से शनिदेव उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे. कैलाश पर शनिदेव को देखते ही शिवजी बोले, मैं सारे दिन सुरक्षित रहा और तुम्हारी वक्रदृष्टि का मुझपर प्रभाव नहीं पड़ा. इतना सुनते ही शनिदेव मुस्कराते हुए बोले-प्रभु! मेरी दृष्टि से न देव और न दानव बच पाए हैं. आज भी पूरे दिन मेरी दृष्टि का प्रभाव आप पर ही रहा.


शिवजी ने शनिदेव को दिया दंडाधिकारी का पद


शनिदेव की बात सुनकर शिवजी आश्‍चर्य में पड़ गए और पूछा, यह कैसे संभव है? मैं तो तुम्हें अपने वास्तविक रूप में मिला ही नहीं, तो भला तुम्हारी वक्रदृष्टि मुझपर कैसे पड़ सकती है? शनि देव बोले, प्रभु! मेरी वक्रदृष्टि के कारण ही आपको आज देव-योनि से पशु-योनि में जाना पड़ा और इस तरह से आप मेरी वक्रदृष्टि के पात्र बन गए. इतना सुनते ही शिवजी शनि से बहुत प्रसन्न हुए और शनिदेव की चतुरताई से प्रभावित होकर उन्हें दंडाधिकारी नियुक्‍त कर दिया. तब से ही शनिदेव के पास हर व्‍यक्ति के कर्मों का लेखाजोखा होता है और वे उसी के अनुसार साढ़ेसाती और ढैय्या के रूप में दंड देते हैं.


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