Shani Dev: शनि देव की क्रूर दृष्टि से कोई नहीं बच पाया है फिर वो चाहे भगवान श्री राम (Shree Ram) हो या शिव शंभू. ऐसी मान्यता है रामायण में प्रभु श्री राम के जन्म के बाद से लेकर रावण के वध तक जो भी घटनाएं हुईं उनमें शनि की क्रूर दृष्टि का असर था.
शनि की महादशा (Shani Ki Mahadasha) या शनि की दृष्टि से कोई नहीं बच पाया है. शनि चालीसा (Shani Chalisa) में इस बात का वर्णन है की राम जी का वनवास और रावण का वध शनि दी महादशा के कारण ही हुआ था.
जब प्रभु श्री राम के जीवन में शनि की दशा (Shani Ki Mahadasha) की शुरुआत हुई तब शनि ने माता कैकयी (Mata Kaikeyi) की बुद्धि भष्ट कर दी और उन्होंने अपने पुत्र के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया.
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
कैकई हूं की मति हरि लीन्हा।।
प्रभु श्री राम कैकयी के सबसे प्रिय पुत्र थे, लेकिन शनि की दशा के कारण माता कैकयी की मति मारी गई और अपने प्रिय राम जी के लिए वनवास मांग लिया. शनि की दशा होने के कारण ही यह सब हुआ और इसका परिणाम भगवान राम को भगुगतना पड़ा.
भोलेनाथ पर कैसे पड़ी शनि की क्रूर दृष्टि
शनि देव की क्रूर दष्टि से देवों के देव महादेव (Mahadeva) भी नहीं बच पाएं. शनि की तिरछी नजर जिस पर पड़ जाती है वो शनि के प्रकोप से नहीं बच पाता. न्याय के देवता शनि देव (Shani Dev) बचपन से ही बहुत उद्दंड थे, उनके पिता सूर्य देव (Surya Dev) ने उनकी उद्दंडता से परेशान होकर भगवान शिव को शनि को अपनी शरण में लेने को कहा और सही मार्ग दिखाने को कहा.
कथा के अनुसार एक बार कैलाश पर्वत पर शनि देव शिव जी से भेंट करने गए और बताया कि शनि की वक्रदष्टि भोलेनाथ पर शुरु होने वाली है और तीन पहर तक रहेगी. शिव जी शनि की वक्री दष्टि से बचने के लिए धरती पर प्रकट हुए और कोकिला वन (Kokila Van) में हाथी का वेष बदलकर विचरण करने लगे.
3 पहर खत्म होने से पहले जब शिव जी कैलाश पहुंचे तो शनि देव उनकी प्रतिक्षा कर रहे थे, तब शनि देव (Shani Dev) ने उन्हें बताया कि उनकी वक्रदष्टि के प्रभाव से कोई नहीं बच पाया, ने देव ना दानव. शनि की वक्रदष्टि के कारण भोलेनाथ को तीन पहर तक पशु योनि में रहना पड़ा, जिस वजह से भोलेनाथ भी वक्रदष्टि का पात्र बनें.
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