Shani Kavach Path: इन 5 राशि के लोगों को हर दिन करना चाहिए शनि कवच स्त्रोत का पाठ, सभी कष्टों से मिलेगा छुटकारा
Shani Kavach Path Benefits:ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन जातकों पर शनि देव की कुदृष्टि पड़ती है उनके जीवन में अस्थिरता आ जाती है. शनि कवच स्त्रोत का पाठ कुछ राशियों को जरूर करना चाहिए.
Shani Dev: ज्योतिष शास्त्र में शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है जो लोगों को उनके कर्मों के हिसाब से दंडित करते हैं. शनि को कर्मफल दाता भी कहा जाता है. शनि देव अपनी स्थिति के अनुसार अच्छे और बुरे दोनों परिणाम देते हैं. शनि की कृपा हो तो व्यक्ति रंक से राजा बन जाता है. वहीं शनि की अशुभ दृष्टि हो तो व्यक्ति को हर काम में अड़चन आती है. शनि के कुछ उपाय कुछ राशियों को जरूर करने चाहिए. खासतौर से शनि कवच स्त्रोत का पाठ कुछ राशियों को जरूर करना चाहिए.
इन लोगों को करना चाहिए शनि कवच स्त्रोत का पाठ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन जातकों पर शनि देव की कुदृष्टि पड़ती है उनके जीवन में अस्थिरता आ जाती है. ऐसे लोग हमेशा मुसीबतों से घिरे रहते हैं. इस समय मकर, कुंभ और मीन राशि के जातकों पर शनि की साढ़े साती चल रही है. मीन राशि के जातकों पर प्रथम चरण, कुंभ राशि के जातकों पर दूसरा चरण और मकर राशि के जातकों पर साढ़े साती का अंतिम चरण चल रहा है. वहीं, कर्क और वृश्चिक राशि के जातकों पर इस समय शनि की ढैय्या चल रही है.
शनि के दुष्प्रभावों से बचने के लिए इन 5 राशि के जातकों को शनि देव की विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए. शनि देव की कृपा पाने के लिए इन राशि के जातकों को हर दिन शनि की पूजा करने के साथ शनि कवच का पाठ करना चाहिए. शनि कवच के पाठ से साढ़े साती का प्रभाव कम होता है. साथ ही जीवन में समस्त दुखों का नाश होता है.
शनि कवच पाठ
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,
शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।
श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।
ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।
नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।
नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।
पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।
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