Shani-Ganesh Story: हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देव कहा जाता है और सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. गणेश जी अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर कर देते हैं, इसलिए इन्हें विघ्नहर्ता कहा जाता है.


वहीं शनि देव न्याय के देवता और दंडाधिकारी कहलाते हैं. क्योंकि शनि देव कर्म के अनुसार न्याय करते हैं और उसी के अनुरूप फल या दंड देते हैं. न्यायधीश और दंडाधिकारी का वरदान शनि देव को शिवजी से ही प्राप्त हुआ है.



धर्म-पुराणों में भगवान गणेश और शनि देव से जुड़ी कई कथाएं व मान्यताएं प्रचलित हैं. इन्हीं में एक कथा गणेश जी के जन्म से जुड़ी है. इस कथा का संबंध भगवान गणेश के साथ ही शनि देव से भी है. आइये जानते हैं भगवान गणेश और शनि देव से जुड़ी इस कथा के बारे में.


गणेश जी और शनि देव की कथा (Lord Ganesh and Shani dev katha)


भगवान गणेश के जन्म का उत्सव


ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान गणेश को जन्म दिया तो शिवलोक में भगवान शंकर और माता गौरी के पुत्र गणेश के जन्म के उत्सव का आयोजन किया गया. इस उत्सव में सभी देवी-देवता बालक गणेश को आशीर्वाद देने के लिए कैलाश पहुंचे. शनि देव भी इस उत्सव में शामिल हुए. लेकिन उन्होंने बालक गणेश को आशीर्वाद नहीं दिया. बल्कि वह अपना सिर नीचे झुकाकर खड़े थे. जब माता पार्वती ने देखा कि शनि देव उनके बालक की तरफ देख भी नहीं रहे तो उन्हें बहुत हैरानी हुई.


 शनि ने नहीं क्यों देखा बालक गणेश की ओर


माता पार्वती ने शनि देव से पूछा कि, आप ऐसे सिर झुकाकर क्यो खड़े हैं और मेरे बालक की ओर क्यों नहीं देख रहे हैं? तब शनि देव ने कहा कि, हे माता! मेरी दृष्टि से आपके बालक को हानि पहुंच सकती है. इसलिए बालक की ओर मेरा न देखना ही उचित होगा. लेकिन मां पार्वती शनि देव की वक्री दृष्टि के श्राप के बारे में नहीं जानती थी. तब शनि देव ने मां पार्वती को अपने श्राप के बारे में बताया. 


जब बालक गणेश पर पड़ी शनि की वक्री दृष्टि


लेकिन माता पार्वती ने कहा कि, यह मेरा पुत्र है और इन्हें सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिला है. आपके देखने से इसका कुछ अमंगल नहीं होगा. माता पार्वती ने  शनि देव से बालक गणेश को देखने के लिए बहुत आग्रह की. शनि देव ने सोचा कि, बालक को नहीं देखने पर माता पार्वती रुष्ट हो जाएगी. ऐसा सोचकर उन्होंने बालक गणेश को देख लिया. लेकिन शनि देव की दृष्टि पड़ते ही बालक गणेश का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया. यह देख माता पार्वती बेहोश हो गईं.


ऐसे मिला गणेश को नया जीवन


तब भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर सवार होकर निकल पड़े. उन्हें उत्तर दिशा की ओर पुष्पभद्रा नदी तट के पास एक हथली का बालक दिखाई दिया. हथनी अपने नवजात शिशु को लेकर उत्तर दिशा मे सिर करके सो रही थी. इसके बाद विष्णु जी ने अपने सूदर्शन चक्र से नवजात गजशिशु का मस्तक काट दिया और उसे लेकर कैलाश पर पहुंचे और  इसके बाद बालक गणेश को गजशिशु का मस्तक लगाया गया. शनि देव की वक्री दृष्टि से बालक गणेश का जीवन संकट में पड़ गया था. लेकिन गजशिशु का सिर लगते ही गणेश जी को दोबारा जीवन प्राप्त हुआ.


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