ShaniKatha : मानव जीवन में हम जब भी कुंडली के माध्यम से अपनी जिंदगी के बारे में जानते हैं तो पता चलता है कि कुंडली में मौजूद सभी ग्रह तीव्र गति से राशि में परिवर्तन करते हैं, लेकिन शनि की गति बेहद सुस्त होती है. यहां तक कि वे सालों साल एक ही राशि में बने रहते हैं. इसका कारण मां पार्वती द्वारा दिया गया श्राप था, जिसके लिए सीधे तौर पर खुद शनिदेव भी जिम्मेदार नहीं थे.


पौराणिक कथाओं के अनुसार शनिदेव भगवान शंकर और पार्वती के पुत्र गणेश जी के जन्मोत्सव कार्यक्रम में कैलाश पर्वत पहुंचे, यहां वह लगातार अपनी निगाह नीचे किए हुए थे. पार्वती जी को पूरा मामला समझ नहीं आया तो उन्होंने शनिदेव से इसकी वजह पूछी. पहले तो शनिदेव सकपकाए, लेकिन बार-बार पूछने पर उन्होंने इसकी वजह बताई कि उनकी उनकी दृष्टि से किसी को भी घातक हानि पहुंच सकती है. इसे मजाक समझते हुए मां पार्वती उनका उपहास करने लगीं.


इस बीच उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को वहां बुलाया मगर जैसे ही शनि की निगाह गणेश जी पर पड़ी तो उनका मस्तिष्क कटकर धड़ से अलग हो गया. यह देखकर पार्वती जी बेसुध हो गईं. किसी तरह होश में लौटने पर उन्होंने श्राप दे दिया कि शनिदेव अंग विहीन हो जाएंगे. शनिदेव के चेतावनी देने के बावजूद उन्हें ऐसा श्राप स्वीकार करना पड़ा.


पार्वती जी के श्राप के कारण शनिदेव के एक पैर में दिक्कत हो गई थी. इससे उनके चलने की गति धीमी हो गई. काफी देर बाद जब पार्वती जी का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने कहा कि उनका श्राप वापस तो नहीं हो सकता है. मगर इसके प्रायश्चित के लिए शनिदेव को उन्होंने वरदान दे दिया कि वो सभी ग्रहों के राजा होंगे. 


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