Shani Dev: सूर्य पुत्र शनि देव कर्मफलदाता हैं. शनि देव लोगों को उनके कर्म के अनुसार ही फल देते हैं. शनि देव महाराज का स्वाभाव कठोर है और न्याय उनको अत्यधिक प्रिय है. बड़े-बड़े देवों ने शनि देव के आगे घुटने टेक दिए. लेकिन सतयुग में शनि देव महाराज से टक्कर लेने वाला भी कोई था.


यह बात बिलकुल सत्य है कि सतयुग में शनि देव से किसी ने सीधी टक्कर ली. अयोध्या के नरेश राजा दशरथ ने, प्रभु श्री राम के पिता ने शनि देव से टक्कर ले ली, और शनि देव को हाथ जोड़ने पर मजबूर कर दिया. आइये जानते हैं पूरी कथा.



राजा दशरथ कैसे मिले शनि देव से


सतयुग में राजा दशरथ का राज्य बहुत अच्छे से चल रहा था. सभी सुखी थे, एक दिन उनके राज ज्योतिषी ने उन्हें एक अचंभित करने वाली खबर दी. खबर ये थी की शनि कृत्तिका नक्षत्र के आखरी चरण में थे और अब वो जल्द ही रोहिणी नक्षत्र में जाने वाले हैं . रोहिणी नक्षत्र में शनि का जाना रोहिणी-शक्ति-भेदन कहलाता है और अगर ये कभी भी आये तो इसका मतलब था कि राज्य में भयंकर सूखा और भूखमरी फैल जाएगी.


राजा दशरथ ने सारे ऋषियों को दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी. राजा दशरथ के मंत्रियों ने बताया इसमें तो न देवराज इंद्र मदद कर पाएंगे न स्वयं ब्रह्मा देव. राजा दशरथ के लिए उनकी प्रजा बच्चों के सामान थी. तो उन्होंने कमान खुद ही संभालने की ठानी. सारे अस्त्रों शास्त्रों से लेस हो कर उन्होंने अपना रथ आकाश की ओर बढ़ा दिया. दशरथ रोहिणी नक्षत्र के आगे खड़े हो गए और जैसे ही शनि ने रोहिणी में बढ़ने की चेष्टा की उन्होंने अपनी प्रत्यंचा चढ़ा दी.


अपने सामने एक मनुष्य को यूं बिना भयभीत हुए खड़ा देख कर शनि महाराज बड़े प्रभावित हुए. उन्हें दशरथ का ये प्रजा परायण स्वाभाव बहुत पसंद आया और उन्होंने वरदान मांगा. वरदान में दशरथ ने उनसे रोहिणी भेदन बंद करने को कहा. ये सुन शनि ने उनसे प्रसन्नता पूर्वक एक और वर मांगने को कहा, तो दशरथ ने अपने राज्य के लिए बारह वर्ष तक अच्छी फसल और कोई भी अकाल न पड़ने का वर मांगा. शनि देव बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें ये दोनों ही वरदान दे दिए.



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