शनि प्रदोष व्रत: 21 मार्च 2020, शनिवार को शनि प्रदोष व्रत है. शास्त्रों में इस व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण और विशेष फलदायी माना गया है. प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है.
इन स्थितियों में विशेष फल मिलता है
जिन लोगों की जन्म कुंडली में शनि अशुभ हैं या फिर शनि की साढ़े साती या ढैय्या चल रही है उन लोगों को इस दिन व्रत रखने से आराम मिला है. वहीं संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को बहुत ही फलदायी माना गया है. मोक्ष प्राप्ति के लिए भी इस दिन व्रत रखना चाहिए.
प्रदोष काल में शनि पूजा
शाम के समय को प्रदोष काल कहा जाता है. इसलिए इस समय भगवान शिव की पूजा करने की मान्यता है. वहीं शनि की पूजा भी सूर्य ढलने के बाद की जाती है. प्रदोष काल में शनि की पूजा करने से शनि अशुभ फल देना कम कर देते हैं. इस दिन शनि से जुड़ी वस्तुओं का दान करना चाहिए. इसके साथ ही शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए और शनि मंत्रों का जाप करना चाहिए.
भगवान शिव की पूजा
प्रदोष काल में शिवलिंग पर बेलपत्री सहित उनकी प्रिय चीजों का चढ़ाएं. शिव चालीसा का पाठ करें.
शनि प्रदोष व्रत कथा
एक कथा के अनुसार बहुत समय पहले एक सेठ किसी नगर में रहता था. वह बहुत धार्मिक और दानी था. जिस कारण हर कोई इस सेठ आदर सम्मान करता था. लेकिन सेठ इसके बाद भी उदास और दुखी रहता था. कई वर्ष बीत जाने के बाद भी उसके कोई संतान नहीं थी. इस कारण एक बार सेठ अपनी पत्नी के साथ तीर्थयात्रा करने का निश्चय किया. यात्रा के दौरान उन्हें तपस्वी साधू मिला. सेठ की भक्ति से प्रभावित साधु ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत रखने के लिए कहा. तीर्थयात्रा के बाद पति-पत्नी वापस घर लौट कर विधि-विधान से शनि प्रदोष व्रत शुरू किया. व्रत के फल स्वरुप सेठ दंपति को संतान की प्राप्ति हुई.
व्रत की विधि
सुबह उठने के बाद भगवान शिव का ध्यान लगाएं. पूजा करें. व्रत के दौरान फलाहार लें. शाम को सूर्यास्त से एक घंटा पूर्व स्नान कर श्वेत वास्त्र धारण कर ईशान कोण की दिशा में किसी एकान्त स्थान पर बैठकर पूजा करें. गंगाजल और साफ जल से उस स्थान को शुद्ध करें. मंडप तैयार करें और उसपर पद्म पुष्प की आकृति पांच रंगों से बनाएं. इसके बाद कुश के आसन उत्तर-पूर्व दिशा की तरफ मुंह कर बैठ जाएं. इसके बाद भगवान शिव को शिव मंत्र बोलते हुए जल चढ़ाएं.
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