Mahima Shani dev ki : नाना विश्वकर्मा से मिले दिव्य दंडअस्त्र से शनिदेव बने कर्मफलदाता
कर्मफलदाता शनि को न्याय देने के लिए अस्त्र की जरूरत हुई तो भगवान शिव ने भगवान विश्वकर्मा को शनिदेव का दंड अस्त्र बनाने का आदेश दिया था.
Mahima Shani dev ki : सृष्टि में न्याय व्यवस्थाएं बनाए रखने और सभी प्राणियों को उनके कर्म के हिसाब से फल देने को उत्पन्न शनिदेव को भगवान शिव ने सभी शक्तियों से परिपूर्ण किया. त्रिदेवों से मिली शक्ति के बूते ही वह दुष्टों का संहार कर दुनिया में न्याय व्यवस्था बनाए रख सकते थे, इसलिए एक दिव्य दंड की आवश्यकता महसूस हुई, जिसके प्रहार के आगे कोई ढाल न खड़ी हो सके. ऐसी शक्ति का समावेश हो, जिसे किसी न्याय या सच्चाई को कोई बुरा असर और अन्यायी को राहत न मिल पाए. इसके लिए भगवान विश्वकर्मा को आदेशित किया गया. अब तक खुद विश्वकर्मा जी नहीं जानते थे कि उनका ही नाती वह शक्तिपुंज बनकर उत्पन्न हुआ है, जिसके लिए उन्हें महादेव ने अस्त्र बनाने का आदेश दिया है.
भगवान शंकर के आदेश से विश्वकर्माजी अपनी कार्यशाला में इस दिव्यास्त्र को बनाने के लिए जुट जाते हैं. कठिन परिश्रम के बाद जब दिव्य दंड तैयार होता है तो खुद अपने लिए एक दिव्यास्त्र बनवाने आए इंद्रदेव उनसे अपने अस्त्र में हो रही देरी के लिए नाराज हो उठते हैं, वो क्रोधित होकर विश्चकर्मा को चेतावनी दे डालते हैं, लेकिन विश्वकर्मा का जवाब सुनकर लज्जित भाव से शांत हो जाते हैं.
विश्वकर्मा दो टूक कहते हैं कि देवराज आप मुझे उस शक्तिपुंज का अस्त्र तैयार करने के महादेव का आदेश पालन करने में बाधा खड़ी कर रहे हैं. इतना सुनते ही देवराज शांत हो जाते हैं. इस पर भगवान विश्चकर्मा इंद्र को शनि के लिए बनाए गए दिव्य दंड के दर्शन कराते हैं, जिसे देखकर खुद इंद्र भौचक्के रह जाते हैं.
फिर भी घमंड में चूर इंद्र उसे उठाने के लिए दोनों हाथ बढ़ाते हें, लेकिन पूरी ताकत लगाने के बावजूद दिव्य दंड नहीं उठता तो शर्मसार हो जाते हैं, इस पर विश्वकर्मा उन्हें समझाते हैं कि हे देवराज आप खुद सोचिए जिस शक्ति का आप शस्त्र नहीं उठा पा रहे हैं, भला उसे नियंत्रित कैसे कर पाएंगे. ऐसे में आप दुखी न हो और दुनिया में शक्ति संतुलन और न्याय व्यवस्था बनाए रखने वाली शक्ति का स्वागत करिए. इस तरह मां छाया के गोद में पिता के प्रकोप से बचे शनिदेव को दिव्यदंड से कर्मफलदाता बनाने की प्रक्रिया आगे बढ़ जाती है.
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