शनिदेव दंडाधिकारी और न्यायाधीश हैं. नवग्रह मंडल में ऐसा कोई ग्रह नहीं है जो उनसे बैरभाव अथवा शत्रुता रखता हो. ऐसे में सौरमंडल परिवार के अकेले ऐसे ग्रह हैं जो अजातशत्रु हैं.


सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रह में आपस में नैसर्गिक शत्रुता और मित्रता रहती है. चंद्रमा एक मात्र ऐसा ग्रह है जो किसी से शत्रुता अथवा विरोध का भाव नहीं रखता है. ऐसे में सभी ग्रह चंद्रमा के लिए मित्रभाव हैं अथवा समभाव हैं.


ग्रहमैत्री चक्र के अनुसार शनिदेव केवल सूर्यदेव ही अपना विरोधी मानते हैं लेकिन पिता होने के नाते यह सूर्य का यह द्वेषभाव निष्प्रभावी हो जाता है. इसके अतिरिक्त शनिदेव से अन्य कोई ग्रह शत्रुता और विरोध नहीं रखता है.


यह शनिदेव की ही महिमा है कि एक मात्र शत्रु सूर्यदेव भी उनके पिता के प्रभाव में शत्रुता जता नहीं पाते हैं.


ग्रह मैत्री चक्र के अनुसार ही मंगल, गुरु और बुध शनिदेव से समता का भाव रखते हैं. वहीं, शुक्र शनिदेव से परम मित्रता का भाव रखते हैं. शुक्रदेव और शनिदेव एक दूसरे को मित्र मानते हैं. ऐसे में यह स्थिति परम मित्रता की कहलाती है.


यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि शनिदेव स्वयं तो अजात शत्रु हैं लेकिन वे तीन ग्रहों को अपना विरोधी मानते हैं. सूर्य, चंद्रमा और मंगल ग्रह से शनिदेव शत्रुता रखते हैं. सूर्य से उनकी शत्रुता स्वभावतः है. सूर्यदेव शनिदेव की मां छाया का तिरस्कार करते हैं. चंद्रमा से शनिदेव भावनात्मक विरोध रखते हैं. शनिदेव वरिष्ठ हैं. अनुभवी हैं. ऐसे में उन्हें अतिभावुकता अप्रिय लगती है.