न्यायदेव शनिदेव सूर्यपुत्र हैं. ज्योतिष के अनुसार सूर्य आत्मा के कारक देवता हैं. कुंडली में सूर्य का बलवान होना आत्मबल को बढ़ाता है. सूर्यपुत्र होने के कारण शनिदेव भी आत्मा को बल देने वाले ग्रह हैं. शनिदेव की प्रसन्नता जीवन में खुशियों की वर्षा करती है. व्यक्ति को आत्मबली और धैर्यवान बनाती है.


धैर्य से व्यक्ति कार्य व्यापार में मनोयोग से जुटकर सफलता प्राप्त करता है. शनिदेव जब जातक की राशि से भाग्य कर्म और लाभ स्थान में संचरण करते हैं तो व्यक्ति के जीवन में चहुंओर उन्नति के अवसर बनते हैं. शनि पराक्रम देते हैं. साहस से व्यक्ति इच्छित परिणाम पाता है. शनि की साढे़साती और ढैया की स्थिति में शनिदेव परीक्षा लेते हैं.


सर्वप्रथम वे व्यक्ति को धैर्य विमुख करते हैं. अधीरता में व्यक्ति गलती करता है और उसके प्रारब्ध का हिसाब आरंभ हो जाता है. जो लोग धैर्यपूर्वक सही के साथ आगे बढ़ते रहते हैं वे शनिदेव की कृपा पाते हैं. शनि ऐसे लोगों को आत्मबल प्रदान करते हैं. आत्मबली व्यक्ति कठोरतम परिस्थितियों में अडिग बना रहता है. कार्य व्यापार में सहजता रखता है. नियमितता और निरंतरता बनाए रखता है.


जिस किसी व्यक्ति के जीवन में शनिदेव के प्रकोप का आरंभ हो उसके लिए शनिदेव से धैर्य और आत्मबल के लिए प्रार्थना करना श्रेयष्कर होता है. ज्योतिष नियमों के अनुसार शनिदेव दंडाधिकारी के रूप में न्याय करते हैं. जो इन्हें दंड का प्रलाप करता है और दुख मनाता है वह कष्ट उठाता है. जो लोग दंड को न्याय के रूप में स्वीकार करते हैं वे सहजता से आगे बढ़ते हैं. अंततः सुखी होते हैं.


शनिदेव कोप की अवस्था में हृदय गति बढ़ा देते हैं. व्यक्ति बैचेनी अनुभव करता है. उतावलेपन का शिकार हो जाता है. जो व्यक्ति इन लक्षणों को अनुभव करे उसे यथाशीघ्र शांति और धैर्य के लिए प्रयास बढ़ा देना चाहिए. आस्था और आत्मविश्वास से धर्म और धैर्य दोनों बढ़ते हैं.