Shanivar Vrat Katha: शनिवार व्रत की कथा पढ़ने से दूर होते सभी संकट, शनि देव रहते हैं मेहरबान
Shani Dev: शनिवार को शनि देव की पूजा अचूक मानी गई है. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार की व्रत कथा का विशेष महत्व है. मान्यता है इसके प्रताप से शनि की महादशा में भी राहत मिलती है.
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Shani Dev Vrat Katha, Puja: शनि देव नवग्रहों में सबसे उग्र स्वभाव का ग्रह माना गया है. वहीं भगवान भोलेनाथ ने इन्हें न्याय के देवता की उपाधि दी है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में शनि भारी हो तो जीवन में उथल-पुथल मच जाता है लेकिन शनि देव जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसके भाग्य खुल जाते हैं.
शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन व्रत रखना शुभ माना गया है, जो लोग शनिवार का व्रत करते हैं, उनको पूजा के समय शनिवार व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए. शनिवार व्रत कथा के पाठन से शनि दोष और साढ़ेसाती-ढैय्या के प्रभाव कम होते हैं.
शनिवार व्रत कथा (Shanivar Vrat Katha)
एक बार सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ होने को लेकर विवाद हो गया. जब समस्या का हल नहीं निकला तो सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु इंद्र देव के पास गए. इंद्र देव भी इसका निर्णय नहीं कर पाए फिर सभी ग्रह इंद्र देव के कहने पर पृथ्वी पर न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य के पास पहुंच.
नवग्रहों में छिड़ी सर्वश्रेष्ठ होने की बहस
राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचकर सभी ग्रहों ने अपने आने का कारण बताया. राजा विक्रमादित्य ने काफी सोच विचार के बाद नौ धातु स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से सिंहासन बनवाए. धातुओं के गुणों के अनुसार उन्हें क्रमानुसार रखवा दिए फिर ग्रहों से अपने-अपने सिहांसन पर बैठने को कहा और बोले कि जो सबसे पहले बैठेगा वही श्रेष्ठ होगा.
राजा विक्रमादित्य ने सुलझाया विवाद
राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देव क्रोधित हो गए क्योंकि उनका आसन लोहा सबसे आखिरी में रखा था.स्वंय को सबसे छोटा जानकर वह नाराज हो गए. शनि देव ने चेतावनी के अंदाज में कहा कि राजा आपने मेरा अपमान किया, आप मेरी शक्तियों से परिचित नहीं है, शनि की महादशा में व्यक्ति का सर्वनाश हो जाता है.
राजा के निर्णय से क्रोधित हुए शनि देव
शनि देव क्रोध में राजा की सभा से चले गए लेकिन कुछ दिन बाद राजा विक्रमादित्य पर शनि की महादशा शुरू हो गई. शनि देव घोड़ों का व्यापारी बनकर उनके राज्य में आए. राजा विक्रमादित्य उनके घोड़े खरीदने का आदेश दिया. एक बार राजा विक्रमादित्य उनमें से एक घोड़े पर सवारी कर रहे थे तो वो घोड़ा उन्हें जंगल में ले गया और गायब हो गया. भूखे-प्यासे राजा को एक चरवाहे ने पानी पिलाया तो राजा ने उसे अंगूठी दे दी और राज्य में जाने का रास्ता पूछा.
अन्याय करने पर शनि देव ने सिखाया विक्रमादित्य को सबक
नगर में आकर राजा विक्रमादित्य एक सेठ के यहां आराम कर रहे थे. राजा के कुछ देर वहां बैठने पर सेठ की बहुत कमाई हुई, उसने उन्हें भाग्यवान व्यक्ति समझा और अपने घर ले गया. सेठ के घर में सोने का हार खूंटी पर लटका था. सेठ घर से बाहर गया तो एक आश्चर्यजनक घटना घटी, अचनाक हार गायब हो गया. सेठ ने राजा पर चोरी का आरोप लगा दिया और नगरी के राजा ने राजा विक्रमादित्य के हाथ-पैर काटवा दिए.
राजा विक्रमादित्य की हुई बुरी दशा
एक तैली को राजा विक्रमादित्य की दशा पर दया आ गई. इसके बाद राजा विक्रमादित्य पर शनि की महादशा खत्म हो गई थी. वर्षा ऋतु में वह मल्हार गा रहे थे, उस राज्य की राजकुमारी मनभावनी ने राजा के मेघ मल्हार सुनकर मोहित हो गई और उससे विवाह करने की जिद करने लगी. राज्य के राजा ने बेटी की विवाह राजा विक्रमादित्य से करवा दिया. वह दोनों तेली के घर में रहने लगे.
शनि देव से मांगी क्षमा
एक रात शनि देव ने राजा विक्रमादित्य को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि तुमने मुझे छोटा कहने का परिणाम देख लिया. तब राजा विक्रमादित्य ने शनि देव से क्षमा मांगी और कहा कि उनके जैसा दुख किसी को न दें.शनि देव ने कहा कि जो उनकी कथा का श्रवण करेगा और व्रत रखेगा, उसे शनि दशा में भी कोई दुख नहीं होगा. शनि देव ने राजा विक्रमादित्य के हाथ और पैर वापस कर दिए.
शनिवार व्रत कथा का महत्व
शनि देव के चमत्कार से सेठ का हार भी वापस अपनी जगह लौट आया. सेठ के सारी बात पता चली तो उसने अपनी बेटी श्रीकंवरी का विवाह राजा विक्रमादित्य से कर दिया. राजा विक्रमादित्य अपनी दो पत्नियों मनभावनी एवं श्रीकंवरी के साथ अपने राज्य लौट आए. राजा विक्रमादित्य पूरे राज्य में घोषणा की कि, शनि देव ही सब ग्रहों में श्रेष्ठ हैं. शनिवार को शनि देव की पूजा, कथा और व्रत करने वालों पर वह प्रसन्न होते हैं.
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