सभी पूर्णिमा में विशेष मानी जाने वाली शरद पूर्णिमा का पर्व आज है. शरद पूर्णिमा को अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस पूर्णिमा को कौमुदी पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन माता लक्ष्मी की भक्ति-भाव के साथ पूजा-अर्चना की जाती है. जो भक्तगण माता लक्ष्मी की सच्चे मन से अराधना करते हैं उन पर देवी मां की कृपा बनी रहती है. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज-वाराणसी समेत तीर्थस्थलों पर श्रद्धालु आज आस्था की डुबकी लगा रहे हैं. वहीं कोरोना की वजह से मंदिरों में प्रतीकात्मक आयोजन किए जा रहे हैं.



शरद पूर्णिमा की रात अमृत वृषा होती है

कहा जाता है कि, शरद पूर्णिमा का चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है. शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में सभी तरह के रोगों का नाश करने की क्षमता होती है. इसी कारण यह भी कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात अमृत वृषा होती है. यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चांद, धरती से बेहद नजदीक होता है. इस दौरान अंतरिक्ष के सभी ग्रहों से निकलने वाली पॉजिटिव एनर्जी चांद की किरणों से सीधे धरती पर पहुंचती है.



शरद पूर्णिमा की रात खासतौर पर खीर बनाई जाती है


शरद पूर्णिमा के दिन खासतौर पर खीर बनाई जाती है और उसे पूरी रात खुले आसमान के नीचे रखा जाता है. इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पड़ने से खीर अमृत के समान हो जाती है. इसका सेवन करना सेहत के लिए लाभकारी माना जाता है. इसके अलावा एक तर्क यह भी है कि दूध में लैक्टिक अमल पाया जाता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा मे शक्ति अवशोषित करता है और चावल में स्टार्च होता है इस वजह से ये प्रक्रिया और सरल हो जाती है. वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार इस खीर को खान से स्वास्थ्य को काफी लाभ मिलते हैं.


क्या है शरद पूर्णिमा मनाने की कथा


एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक साहूकार की दो बेटियां थीं. वह दोनों ही पूर्णिमा का व्रत भक्ति-भाव से रखती थीं. लेकिन एक बार बड़ी बेटी ने तो पूर्णिमा का विधिपूर्वक व्रत किया लेकिन छोटी बेटी ने व्रत छोड़ दिया. इस कारण छोटी बेटी के बच्चों की जन्म लेते ही मृत्यु होने लगी. फिर साहूकार की बड़ी बेटी के पुण्य स्पर्श से छोटी बेटी का बच्चा जीवित हो उठा. कहा जाता है कि तभी से यह व्रत विधिपूर्वक किया जाता है.


शरद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त


शरद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त 30 अक्टूबर की शाम 05: 47 मिनट से 31 अक्टूबर की रात 08:21 मिनट तक रहेगा.


शरद पूर्णिमा पर ऐसे करें पूजा


शरद पूर्णमा पर माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इस दिन सुबह स्नान करने के बाद एक साफ चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए. इसके बाद मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. अब माता लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए. इसके बाद स्तोत्र का पाठ भी करना चाहिए. कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन इस स्तोत्र का पाठ करने से देवी लक्ष्मी भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं.


ये भी पढ़ें


Eid Miladun Nabi 2020: ईद ए मिलादुन्नबी आज, कोरोना काल में ऐसे मनाया जा रहा पैगंबर मोहम्मद का जन्मदिन


हनुमान जी के इन 12 नामों में छिपी है चमत्कारिक शक्तियां, जपने से दूर हो जाएंगे सभी कष्ट