Maa Kalratri Aarti: देवी कालरात्री की पूजा के दिन बन रहा है अद्भुत संयोग, जानें आरती और स्तोत्र
Maa Kalratri Aarti: मां दुर्गा की सातवीं शक्ति देवी कालरात्रि का पूजन नवरात्रि की सप्तमी पर किया जाता है. 2 अक्टूबर 2022 को मां कालरात्रि की आरती और मंत्र जाप कर देवी को प्रसन्न करें.
Shardiya Navratri 2022 Maa Kalratri Aarti: मां दुर्गा का सातवीं शक्ति देवी कालरात्रि का पूजन नवरात्रि की सप्तमी पर किया जाता है. इस साल देवी कालरात्रि की पूजा के दिन शुभ योग का संयोग बन रहा है, मान्यता है कि इसमें शक्ति साधना से भय, संताप, अकाल मृत्यु का डर खत्म हो जाता है. देवी कालरात्रि ने तरह शुंभ-निशुंभ का नाश कर देवी-देवताओं की रक्षा की थी. इनकी आराधना से साहस में वृद्धि होती हैं. 2 अक्टूबर 2022 को मां कालरात्रि की आरती और मंत्र जाप कर देवी को प्रसन्न करें.
मां कालरात्रि पूजा 2022 शुभ योग
हिंदू पंचांग के अनुसार 2 अक्टूबर 2022 को नवरात्रि की सप्तमी पर सर्वार्थ सिद्धि और सौभाग्य योग का संयोग बन रहा है.
- सर्वार्थ सिद्धि योग - 2 अक्टूबर 2022, सुबह 06.20 - 3 अक्टूबर 2022, सुबह 01.53
- सौभाग्य योग - 1 अक्टूबर 2022, रात 07.59 - 2 अक्टूबर 2022, शाम 05.14
मां कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली। काल के मुह से बचाने वाली।।
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।महाचंडी तेरा अवतार।।
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा।।
खड्ग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली।।
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा।।
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी।।
रक्तदंता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना।।
ना कोई चिंता रहे बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी।।
उस पर कभी कष्ट ना आवें। महाकाली मां जिसे बचावे।।
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि मां तेरी जय।
मां कालरात्रि शक्तिशाली मंत्र
- ओम देवी कालरात्र्यै नमः
- या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
- हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
मां कालरात्रि स्तोत्र पाठ
ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनां पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशंकरभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥
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