Shardiya Navratri 2024 Day: 6 अक्टूबर 2024 को मां कूष्मांडा की पूजा होगी. शारदीय नवरात्रि का चौथे दिन मां कूष्मांडा को समर्पित है. जब सृष्टि की रचना नहीं हुई तो मां के इसी रूप ने सृष्टि को आकार दिया था.


ये ही आदिशक्ति हैं , यह ताकतवर और ज्ञान की पर्याय हैं. मां कूष्मांडा का वाहन सिंह है. इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृत-पूर्ण कलश, चक्र तथा गदा रहते हैं. आइए जानते हैं मां कूष्मांडा की कथा.


मां कुष्मांडा की कथा (Maa kushmanda katha)


पौराणिक कथा के अनुसार मां कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा. मां दुर्गा असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा का अवतार लिया था. मान्यता है कि देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी. पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि देने की भी परंपरा है. इसके पीछे मान्यता है ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और पूजा सफल होती है.


मां कूष्मांडा ने मिटाया सृष्टि का अंधकार


देवी के नाम कूष्मांडा का पूरा अर्थ है ऊर्जा का छोटा ब्रह्मांडीय गोला यानी सृष्टि. ऐसी मान्यता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पहले अंधकार था. उस समय मां दुर्गा ने कूष्मांडा स्वरूप में संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना की थी.


मां कूष्मांडा को शक्‍त‍ि का चौथा स्वरूप माना जाता है, जो सूर्य के समान तेजस्वी हैं। दुर्गा सप्तशती के कवच में लिखा है कुत्सित कूष्मा कूष्मा-त्रिविधतापयुत संसार, स अण्डे मांसपेश्यामुदररूपायां यस्या सा कूष्मांडा।


मां कूष्मांडा ध्यान मंत्र


वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।


सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥


भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।


कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥


पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।


मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥


प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।


कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥


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