Shardiya Navratri 2024 Day 6 Maa katyayani Puja: नवरात्रि में छठें दिन की अधिष्ठात्री देवी हैं मां कात्यायनी. इनके नाम की उत्पति के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं. कत ऋषि के पुत्र महर्षि ’कात्य’ थे. महर्षि ’कात्यायन’ इन्ही के वंशज थे. चूंकि घोर तपस्या के बाद माता पार्वती / कात्यायनी की पूजा सर्वप्रथम करने का श्रेय महर्षि कात्यायन को जाता है इसीलिए इन माता का नाम देवी कात्यायनी पड़ा.


कात्यायन महर्षि का आग्रह था कि देवी उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें. अश्विन कृष्ण चतुर्दशी  को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी नवमी तक इन्होंने तीन दिन कात्यायन द्वारा की जा रही अर्चना स्वीकृत की. दशमी को महिषासुर का वध किया. देवताओं ने इनमे अमोघ शक्तियां भर दी थी.


छठे दिन साधक के मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है. उसमें अनन्त शक्तियों का संचार होता है. वह अब माता का दिव्य रूप देख सकता है. भक्त को सारे सुख प्राप्त होते हैं. दुख दारिद्र्य और पापों का नाश हो जाता है.


ये दिव्य और भव्य स्वरुप की हैं. ये शुभ वर्णा हैं और स्वर्ण आभा से मण्डित हैं. इनकी चार भुजाओं में से दाहिने तरफ का ऊपरवाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में स्थित है. बाएं हाथ में ऊपर कर हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल है. इनका भी वाहन सिंह है.


मां कात्यायनी का प्रार्थना मंत्र है (Maa katyayani Mantra)


चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥


सम्पूर्ण ब्रज की अधिष्ठात्री देवी यही माता थी. चीर हरण के समय माता राधा और अन्य गोपियां इन्ही माता की पूजा करने गई थीं. कात्यायनी माता का वर्णन भागवत पुराण 10.22.1 में भी है, श्लोक है:–
हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दत्रजकुमारिकाः ।
चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्च्चनव्रतम् ॥


अर्थात:– श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित् | अब हेमन्त ऋतु आयी. उसके पहले ही महीने में अर्थात् मार्गशीर्ष में नन्द बाबा के व्रज की कुमारियां कात्यायनी देवी की पूजा और व्रत करने लगीं. वे केवल हविष्यान्न ही खाती थीं.


देवी पुराण के अनुसार आज के दिन 6 कन्याओं का भोज करवाना चाहिए. स्त्रियां आज की दिन स्लेटी रंग के वस्त्र पहनती हैं.


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