हिंदू धर्म में सभी देवताओं का कोई न कोई वाहन होता है. भगवान शिव के वाहन नंदी हैं. नन्दी कैलाश के द्वारपाल भी हैं, जो शिव का निवास है. संस्कृत में 'नन्दि' का अर्थ प्रसन्नता या आनन्द है. नंदी को शक्ति-संपन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है.
शिव की मूर्ति के सामने या शिव मंदिर के बाहर शिव के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित होती है. नंदी को महादेव का सबसे प्रिय गण माना जाता है. हम आपको बताने जा रहे हैं कि नंदी कौन था और कैसे हुए वह शिव के इतने प्रिय.
पौराणिक कथा के अनुसार शिलाद ऋषि ने शिव की घोर तपस्या के बाद नंदी को पुत्र रूप में पाया था. शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को संपूर्ण वेदों का ज्ञान प्रदान किया.
शिलाद ऋषि के आश्रम में एक दिन मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य ऋषि पधारे. नंदी ने इन ऋषियों की सेवा की. जब ऋषि जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को तो लंबे और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को उन्होंने आशीर्वाद नहीं दिया.
शिलाद ऋषि ने दोनों से यह कारण पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया. इस पर ऋषियों ने कहा कि नंदी अल्पायु है. यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए.
नंदी को जब पिता की चिंता का कारण पता चला तो उन्होंने पिता से कहा कि आपने भगवान शिव की कृपा से मुझे पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे.
इसके बाद नंदी शिव की घोर तपस्या की. नंदी की तपस्या से खुश होकर एक दिन भगवान शिव नंदी के सामने प्रकट हुए. शिव ने नंदी से वरदान मांगने को कहा तो नंदी ने कहा कि मैं उम्रभर आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं. इस पर भगवान शिव ने उनको बैल का चेहरा देकर उनको अपने वाहन और गणों में सर्वश्रेष्ठ गण के रूप में स्वीकार कर लिया.
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