(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Shiva Mundmala: भगवान भोलेनाथ इसलिए धारण करते हैं अपने गले में मुंडमाला, जानें इस रहस्य की कहानी
Shiva Mundmala: पुराणों के अनुसार भगवान भोलेनाथ के गले की मुंडमाला उनके और माता सती के प्रेम के साथ ही साथ माता सती के 108 जन्मों के प्रतीक के रूप में माना जाता है.
Shiva Mundmala: देवों के देव कहे जाने वाले भगवान भोलेनाथ की लीलाएं अपरमपार हैं. ऐसा कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ इतने भोले हैं कि वे अपने भक्त की श्रद्धा से बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं और अपने भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं. जिस तरह से भगवान भोलेनाथ की महिमा अपरमपार है उसी तरह से उनके रूप-स्वरुप की भी महिमा अपरमपार है. भगवान भोलेनाथ अपने शरीर पर त्रिशूल, नाग, चन्द्रमा और मुंडमाला जैसी कई चीजों को धारण करते हैं. पुराणों के अनुसार भगवान भोलेनाथ जो कुछ भी अपने शरीर पर धारण करते हैं, उसके भी पीछे कोई न कोई रहस्य छुपा हुआ है. आइए जानते हैं उस रहस्य के बारे में जिसकी वजह से भगवान शिव धारण करते हैं मुंडमाला.
यह है भगवान भोलेनाथ की मुंडमाला का रहस्य:
भगवान भोलेनाथ के गले की मुंडमाला इस बात का प्रतीक है कि भगवान भोलेनाथ मृत्यु को भी अपने वश में किए हुए हैं. पुराणों के मुताबिक भगवान शिव के गले की यह मुंडमाला भगवान शिव और माता सती के प्रेम का प्रतीक भी है. ऐसी मान्यता हैं कि एक बार नारद मुनि के उकसाने पर माता सती ने भगवान भोलेनाथ से 108 शिरों वाली इस मुंडमाला के रहस्य के बारे में हठ करके पूछा था. भगवान भोलेनाथ के लाख मनाने पर भी जब माता सती नहीं मानी तब भोलेनाथ ने इसके रहस्य को माता सती से बताया था.
भोलेनाथ ने माता सती से बताया कि मुंडमाला के ये सभी 108 सिर आपके ही हैं. भोलेनाथ ने माता से कहा कि इससे पहले आप 107 बार जन्म लेकर अपना शरीर त्याग चुकी हैं और यह आपका 108वां जन्म है.
अपने बार-बार शरीर त्याग करने के बारे में जब माता सती ने भोलेनाथ से पूछा कि ऐसा क्या कारण है? कि केवल मैं ही शरीर का त्याग करती हूं आप नहीं. माता सती के इस सवाल पर भोलेनाथ ने उन्हें बताया कि मुझे अमरकथा का ज्ञान है इसलिए मुझे बार-बार शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता. इस पर माता सती ने भी भगवान भोलेनाथ से अमरकथा सुनने की इच्छा प्रकट की. ऐसा माना जाता है कि जब भोलेनाथ माता सती को अमरकथा सुना रहे थे तो माता सती कथा के बीच में ही सो गईं और उन्हें अमरत्व की प्राप्ति नहीं हो पाई. इसका परिणाम यह हुआ कि माता सती को राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह करना पड़ा.