Monday path, Shiva Tandav Stotra: हिंदू धर्म में कालों के काल महाकाल की पूजा अर्चना के लिए सोमवार का दिन उत्तम माना जाता है. इनकी पूजा से सारी दुविधाएं दूर हो जाती है. कहते हैं सोमवार के दिन अगर शिव तांडव स्त्रोत (Shiva tandav Stotra path) का पाठ किया जाए तो शनि, राहु और केतु के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है. इसके उच्चारण से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर मन इच्छा फल प्रदान करते हैं. आइए जानते हैं शिव तांडव स्त्रोत के फायदे और विधि.
शिव तांडव स्त्रोत करने की विधि (Shiva tandav Stotra vidhi)
- शास्त्रों के अनुसार प्रात: काल या फिर प्रदोष काल में ही शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया जाता है.
- सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद भक्ति भाव से देवों के देव महादेव की पूजा अर्चना करें.
- शिव जी प्रिय वस्तु उन्हें अर्पित कर भोग लगाएं और फिर स्त्रोत आरंभ करें.
- मान्यता है कि शिव तांडव स्त्रोत का जितने तेज स्वर में उच्चारण करेंगे उतना ही इसका शुभ प्रभाव जातक को मिलेगा.
क्यों करें शिव तांडव स्त्रोत (Shiva tandav Stotra Benefit)
- पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ के परम भक्त रावण ने शारीरिक पीड़ा से उबरने के लिए शिव तांडव स्त्रोत का पाठ किया था. ऐसे में मानसिक और शारीरिक परेशानियों को दूर करने के लिए ये स्तुति करना चाहिए.
- लेखन, योग, चित्रकला, नृत्य, ध्यान आदि विषयों में सफलता प्राप्त करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत का पाठ शुभ माना जाता है.
- प्रतिदिन शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से आत्मबल मजबूत होता है. धन से संबंधित दिक्कतों का सामना करने के लिए ये पाठ उचित माना जाता है.
- जिसकी कुंडली में काल सर्प योग औऱ पितृदोष हो उसे ये पाठ नियमित रूप से करना चाहिए. इससे इन दोषों का प्रभाव कम होता है.
- शिव तांडव स्त्रोत करने से नकारात्मक शक्तियां आसपास भी नहीं भटकती.
शिव तांडव स्त्रोत
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी_
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर_
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा_
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्_
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्_
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा_
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी_
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वसद्_
विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल_
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्_
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥१२॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥१४॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१५॥
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