Shivputra Jalandhar Katha: शिव के ताप से भस्म हो जाते 'इंद्र' यदि न आते...शिवपुत्र जालंधर से जुड़ी ये कथा बड़ी रोचक है
Shivputra Jalandhar Story: भगवान शिव एक बार इंद्र देव से बहुत क्रोधित हो गए, तब बृहस्पति देव ने शिवस्तुति गाकर इंद्र के प्राण की रक्षा की.
Shivputra Jalandhar Mythological Katha: शिवपुत्र जालंधर की उत्पत्ति या जन्म की कथा भगवान शिव, इंद्र देव और बृहस्पति से जुड़ी हुई है. इस कथा से जानिए आखिर कैसे हुआ शिवपुत्र जालंधर का जन्म और क्यों शिवजी के क्रोध से भस्म होने वाले थे इंद्र.
शिवपुत्र जालंधर की पौराणिक कथा (Shivputra Jalandhar Mythological Katha)
कथा के अनुसार, एक बार इंद्र देव और गुरु बृहस्पति भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत जा रहे थे. तभी शिवजी ने दोनों की परीक्षा लेनी चाही. शिवजी भेष बदलकर अवधूत बन गए. इस रूप में शिवजी बहुत भयावह लग रहे थे. शिवजी इंद्र और बृहस्पति के मार्ग में खड़े हो गए. अवधूत को देखकर इंद्र और बृहस्पति हैरान हुए.
इंद्र को देवराज होने पर अत्यंत घमंड था. इसलिए उन्होंने अहंकार और क्रोध में शिवजी से पूछा, ‘तुम कौन? क्या महादेव अभी कैलाश पर्वत पर निवास कर रहे हैं, हम उनसे मिलने आए हैं.’ इंद्र की बात सुनकर भी शिवजी चुपचाप खड़े रहे. इस तरह से इंद्र को और अधिक गुस्सा आ गया. उन्हें लगा एक साधारण अवधूत द्वारा देवराज का अपमान हो रहा है. इससे इंद्र बहुत क्रोधित हो गए. उन्होंने अवधूत से कहा कि, मेरे बार-बार पूछने पर भी तुमने कुछ न कहकर मेरा बहुत अपमान किया है, इसके लिए तुम्हें दंड दिया जाएगा और इंद्र ने अवधूत पर प्रहार करने के लिए अपना व्रज उठा लिया.
इधर अवधूत के शरीर पर धधकती ज्वाला और चेहरे पर क्रोध देख बृहस्पति समझ गए कि ऐसा प्रचंड रूप केवल महादेव का ही हो सकता है. शिवजी के इस विकराल रूप और क्रोध से इंद्र का विनाश न हो जाए, इसलिए बृहस्पति शिवजी के क्रोध को कम करने से लिए शिवस्तुति गाने लगे. इतना ही नहीं बृहस्पति ने इंद्र को महादेव के चरणों में लेटा दिया, जिससे इंद्र के प्राणों की रक्षा हो सके.
लेकिन महादेव क्रोध में थे और मस्तिष्क से अब भी ज्वाला निकल रही थी. तब बृहस्पति ने कहा, हे महादेव! इंद्र आपके चरणों में हैं. अब आप अपने माथे से निकलने वाली इस ज्वाला को कहीं और स्थान दीजिए और इंद्र के प्राण की रक्षा कीजिए.
शिवजी की तीसरी नेत्र ने निकलने वाली ज्वाला इतनी तीव्र थी इसे न जीव और न देवता सहन कर सकते थे. तब शिव ने इस तेज को एक समुंद्र में फेंक दिया. ज्वाला को समुंद्र में फेंकते ही एक बालक की उत्पत्ति हुई. शिवजी के तेज से जन्म लेने के कारण इस बालक का नाम शिवपुत्र जालंधर पड़ा. भगवान ब्रह्मा द्वारा ही जालंधर का नामकरण किया गया.
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