Mahabharata: महाभारत के दौरान कई योद्धाओं को दान और वरदान की ताकत से विजय मिली, लेकिन जो सबसे बड़ा दानवीर था, उसने मरण के समय भी दानशीलता नहीं छोड़ी. जी हां, पूरे महाभारत काल में महावीर कर्ण से बड़ा दानवीर कोई नहीं था, जिसने अर्जुन के हाथों घायल होकर उखड़ती सांसों के बावजूद दान मांगने गए कृष्ण की मनोकामना पूरी करके ही अंतिम सांस ली.


महाभारत युद्ध में अर्जुन रथ धंसने पर नीचे उतरकर पहिया निकालते हुए कर्ण को बाण मारकर बेदम कर देते हैं. कर्ण धराशायी होकर अंतिम सांसें ले रहे होते हैं. तभी श्रीकृष्ण कर्ण की अंतिम परीक्षा लेने को ब्राह्मण भेष धारण कर उनके सामने आ जाते हैं. वह कर्ण से स्वर्ण दान मांगते हैं. कवच और कुंडल पहले ही इंद्र को दान कर चुके कर्ण ब्राह्मण वेशधारी श्रीकृष्ण को अपना मुंह खोलकर दिखाते हुए कहते हैं कि हे ब्राह्मण देवता, आप मेरे दांतों को तोड़कर स्वर्ण प्राप्त कर लीजिए. इस पर ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण धिक्कारते हैं कि यह पाप का काम हैं, मैं इसे नहीं कर सकता.


पत्थर से तोड़े दांत और बारिश के पानी से धोकर दिए


यह सुनकर दर्द से कराहते महारथी कर्ण युद्ध भूमि में पड़े एक पत्थर से अपने दांत तोड़कर उन्हें सौंप देते हैं. इसके बावजूद ब्राह्मण फिर कर्ण की परीक्षा लेने के मकसद से कहते हैं कि ये दांत तो खून से लथपथ और अशुद्ध हैं, वह इसे ग्रहण नहीं कर सकते. ऐसे में बुरी तरह घायल कर्ण बड़ी मुश्किल से हिलते हुए धनुष बाण उठाकर आसमान में निशाना लगाते हुए बाण छोड़ देते हैं. उनका तीर जाकर बादलों से टकरा जाता है और तुरंत बारिश होने लगती है, तब वर्षा वाले पानी से वे दांतों को धोकर, पूरी तरह शुद्ध कर ब्राह्मण देवता को स्वर्ण दांतों का दान करते हैं. इसके बाद ही उनकी मौत हो जाती हैं.


 


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