आनंद रामायण,(मनोहर कांड, सर्ग 18) के अनुसार, अर्जुन का एक नाम कपिध्वज भी था. उनका यह नाम क्यों पड़ा? यद्यपि यह कथा द्वापर के अन्त की है. एक दिन भगवान कृष्ण जी को छोड़कर अकेले अर्जुन वन में शिकार खेलने गये और घूमते-घूमते दक्षिण दिशा की और चले गए. उस समय सारथी के स्थान पर वे स्वयं थे और घोड़ों को हांकते हुए चले जा रहे थे. इस तरह वन में घूम-घूमकर दोपहर के समय तक उन्होंने बहुत से शिकार किए. इसके बाद स्नान करने की तैयारियां करने लगे. स्नान करने के लिये वे सेतुबन्ध रामेश्वर के धनुषकोटि तीर्थ पर गए, वहां स्नान किया और कुछ गर्वं से समुद्र के तट पर घूमने लगे.


ऐसे हुई अर्जुन और हनुमान जी की पहली मुलाकात


तभी उन्होंने एक पर्वत के ऊपर साधारण वानर का स्वरूप धारण किए हुए महावीर हनुमान जी को बैठे देखा. उस समय हनुमान जी राम नाम जप रहे थे. पीले रंग के रोएं उनके शरीर पर बड़े अच्छे लग रहे थे. उन्हें देखकर अर्जुन ने पूछा- हे वानर! तुम कौन हो? तुम्हारा नाम क्या है? अर्जुन का प्रश्न सुनकर हंसकर हनुमान जी बोले कि जिनके प्रताप से रामचन्द्रजी ने समुद्र पर सौ योजन विस्तृत सेतु बनाया था, मैं वही वायुपुत्र हनुमान हूं. इस तरह गर्व भरे वचन सुनकर अर्जुन ने भी हंसकर कहा कि राम ने व्यर्थ ही इतना कष्ट उठाया. उन्होंने बाणों का सेतु बनाकर क्यों नहीं अपना काम चला लिया. अर्जुन की बात सुनकर हनुमान ने कहा- हम जैसे बड़े बड़े वानरों के बोझ से वह बाण का सेतु डूब जाता, यही सोचकर उन्होंने ऐसा नहीं किया.


जब अर्जुन को हुआ अपनी धनुर्विद्या पर अभिमान


अर्जुन ने कहा- हे कपिश्रेष्ठ! यदि वानरों के बोझ से सेतु टूट जाने का भय हो तो उस धनुर्धारी की धनुर्विद्या की क्या ही विशेषता रही. अभी इसी समय मैं अपने कौशल से बाणों का सेतु बनायए देता हूं, तुम उसके ऊपर आनन्द से नाचो-कूदो. इस प्रकार मेरी धनुर्विद्या का नमूना भी देख लो. अर्जुन को ऐसी बात सुनकर हनुमान जी मुस्कुराते हुए कहने लगे कि यदि मेरे पैर के अंगूठे के बोझ से ही आपका बनाया सेतु डूब जाए तो क्या करियेगा?  हनुमान जी की बात सुनकर अर्जुन ने कहा कि यदि तुम्हारे भार से सेतु डूब जायेगा तो मैं चिता लगाकर उसकी आग में अग्नि स्नान कर लूंगा. अच्छा, अब तुम (हनुमान जी से बोला) भी कोई बाजी लगाओ.


हनुमान को भी हुआ अपने बलशाली होने का अभिमान


अर्जुन की बात सुनकर हनुमान कहने लगे कि यदि मैं अपने अंगूठे के ही भार से तुम्हारे बनाए सेतु को न डुबा सकूंगा तो तुम्हारे रथ के ध्वजा के पास बैठकर जीवन भर तुम्हारी सहायता करूंगा. "अच्छा, यही सही" ऐसा कहकर अर्जुन ने अपने धनुष का टंकार किया और अपने बाणों के सामूह से बहुत थोड़े समय में एक सुदृढ़ सेतु बनाकर तैयार कर दिया. उस सेतु का विस्तार सौ योजन था और वह सागर के ऊपर ही उतरा रहा था. उस सेतु को देखकर हनुमान जी ने उनके सामने ही अपने अंगूठे के भार से डुबा दिया. उस समय गंधर्वों के साथ-साथ देवताओं ने हनुमान जी पर फूलों की वर्षा की, हनुमान के इस कर्म से खिन्न होकर अर्जुन ने समुद्र के तटपर ही चिता तैयार की और हनुमान के रोकने पर भी वे उसमें कूदने को उद्यत हो गए.


श्रीकृष्ण ने तोड़ा अर्जुन और हनुमान का अभिमान


इसी समय एक ब्रह्मचारी का रूप धारण करके श्रीकृष्ण जी वहां आए और उन्होंने अर्जुन से चिता में कूदने का कारण पूछा. अर्जुन के मुख से ही सब बात मालूम करके कहा कि तुम लोगों ने उस समय जो बाजी लगायी थी, वह व्यर्थ थी. क्योंकि उस समय तुम्हारी बातों का कोई साक्षी नहीं था. साक्षी के बिना सच-झूठ का कोई ठिकाना नहीं रहता. इस समय मैं तुम्हारे समय साक्षी के रूप में विद्यमान हूं. अब तुम लोग फिर पहले की तरह कार्य करो तो मैं तुम्हारे कर्मों को देखकर विजय-पराजय का निर्णय करूंगा. ब्रह्मचारी की बात सुनकर दोनों ने कहा- ठीक है और फिर अर्जुन ने पुनः सेतु की रचना की. अबकी बार सेतु के नीचे भगवान कृष्ण जी ने अपना सुदर्शन चक्र लगा दिया.


सेतु तैयार होने पर हनुमान पुनः अपने अंगूठे के भार से उसे डूबाने लगें,जब हनुमान जी ने अबकी बार सेतु को मजबूत देखा तो पैरों, घुटनों तथा हाथों के बल से उसे दबाया, किन्तु वह जरा भी नहीं डूबा. चुप–चाप हनुमान जी ने सोचा कि पहले तो मैने अंगूठे के ही बोझ से सेतु को डुबा दिया था तो फिर यह हाथ-पैर आदि मेरे पूरे शरीर के बोझ से भी क्यों नहीं डूबता. इसमें ये ब्रह्मचारी जी ही कारण हैं. ये ब्राह्मण नहीं, बल्कि साक्षात भगवान कृष्ण हैं, और मेरे गर्व का परिहार करने के लिए ही इन्होंने ऐसा किया हैं. भला, इन भगवान के सामने हम जैसे वानर की सामर्थ्य ही क्या है. 


द्वापर युग में राम के दर्शन पाकर धन्य हुए हनुमान


हनुमान जी ने अर्जुन से कहा कि आपने इन ब्रह्मचारी की सहायता से मुझे परास्त कर दिया है. ये कोई ब्रह्मचारी नहीं, साक्षात भगवान कृष्ण हैं. इन्होंने सेतु के नीचे अपना सुदर्शन चक्र लगा दिया है. हे अर्जुन! हमें यह बात मालूम हो गयी है कि ये आप की सहायता के लिए ही यहां आए हैं. यही रूप धारण करके त्रेता में राम ने हमें वरदान दिया था कि द्वापर के अंत में, मैं तुम्हें कृष्ण रूप में दर्शन दूंगा. आपके सेतु के बहाने इन्होंने अपना वरदान भी आज पूरा कर दिया. हनुमान जी अर्जुन से ऐसा कह ही रहे थे कि इतने में भगवान अपने ब्राह्मण रूप को त्यागकर कृष्ण बन गये. उस समय वे पीले वस्त्र पहने थे. उन कृष्णचन्द्र जी का दर्शन करते ही हनुमान जी के रोंगटे खड़े हो गये और उन्होंने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया. फिर श्रीकृष्ण ने हनुमान जी को उठाकर अपने हृदय से लगाया.


श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार वे सेतु से निकलकर अपने स्थान को चले गए और अर्जुन का बनाया सेतु भी समुद्र की तरंगो में लुप्त हो गया. इस तरह अर्जुन का गर्व नष्ट हो गया और उन्होंने समझा कि भगवान कृष्ण ने ही उन्हें जीवित रख लिया वरना अग्नि स्नान करना पड़ता. कुछ देर बाद श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन से कहा कि तुमने राम के साथ स्पर्धा की थी जो अनुचित था. इसलिए हनुमान जी ने तुम्हारी धनुर्विद्या को व्यर्थ कर दिया था. इसी प्रकार हे पवनसुत! तुमने भी राम से स्पर्धा की थी, इसी कारण तुम अर्जुन से परास्त हुए. तुम्हारा गर्व नष्ट हो गया है. अब तुम दोनों आनन्द के साथ मेरा भजन करो. ऐसा कहकर और हनुमान जी से पूछकर श्रीकृष्ण, अर्जुन के साथ हस्तिनापुर चले गए. इसी कारण अर्जुन का नाम कपिध्वज रखा गाया.


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