Janmastami : हर साल हर हरिभक्त को कृष्ण जन्माष्टमी का इंतजार रहता है. भगवान की लीलाएं पूरे जनमानस में रची बसी हैं. उनकी लीलाएं आज भी लोगों के लिए सबसे आकर्षण का केंद्र हैं. मगर एक बार असुरों का संहार करते हुए उनके सिर पर गौहत्या का पाप लगा, जिससे मुक्ति के लिए उन्हें कठिन जतन करने पड़े, यहां तक कि इसके चलते खुद राधा ही उनसे नाराज हो गईं और उन्हें खुद को छूने से रोक दिया.


दरअसल श्रीकृष्णजी ने मामा कंस के भेजे असुर अरिष्टासुर का वध किया था. अरिष्टासुर सभी को धोखा देने के लिए कान्हा की गायों के बीच बैल का रूप धारण कर पहुंचा था. जिसे मार कर कन्हैया ने उन्हें मुक्ति दी. इस दौरान पूरे गोकुल के लोग उनके दिव्य रूप से अंजान थे. राधा और अन्य गोपियों को लगा कि श्रीकृष्ण ने बैल को मारकर गौ हत्या कर दी है. सभी कृष्णजी को गौ हत्यारा मान बैठीं. कन्हैया ने राधाजी को समझाया कि उन्होंने बैल नहीं, बल्कि असुर का वध किया है. इसके बावजूद राधाजी नहीं मानी तो कृष्णजी को पाप मुक्ति का उपाय करना पड़ा.


एड़ी पटक कर बना दिया कुंड
श्रीकृष्ण ने अपनी एड़ी जमीन पर पटकी और बांसुरी बजाई, जिसके बाद वहां जल धारा बहने लगी, जिससे कुंड बन गया. श्रीकृष्णजी ने यहां सभी तीर्थों से आने के लिए कहा. देखते ही देखते यहां सभी तीर्थ उपस्थित होकर कुंड में समा गए. इसके बाद कृष्णजी ने कुंड में स्नान किया. निकलते हुए उन्होंने कहा कि इस कुंड में स्नान करने वाले को एक ही जगह सभी तीर्थों में स्नान का पुण्य मिल जाएगा. इसकी निशानी आज भी गोवर्धन पर्वत की तलहटी में राधाकृष्ण कुंड के रूप में मौजूद है. 


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