Krishan Leela : हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक इंद्र किसी देवता का अपना नाम न होकर उस पदवी को कहते हैं, जो स्वर्गलोक में देवताओं के राजा की पदवी है. इस गद्दी पर जो भी विराजमान होता है उसे इंद्र की उपाधि मिलती थी. मान्यता है कि अब तक 14 इंद्र हो चुके हैं, जिनमें यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि आदि हैं.


यह भी माना जाता है कि इंद्र के पद पर जो भी बैठता है, उसे हमेशा सिंहासन छिनने का डर रहा, जिसकी वजह से वह किसी साधु और राजा खुद को ताकतवर नहीं बनने देता था. ऐसी कोशिश करने वालों को वह अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देता या राजाओं के यज्ञ के घोड़े चुरा लेता. ऐसी ही कृत्यों के चलते श्रीकृष्ण ने द्वापर में अवतार लिया तो ब्रज में इंद्र की पूजा ही बंद करवा दी.


कृष्ण के अवतार से पहले ब्रज में इंद्रोत्सव पूरे धूमधाम से मनता था. समय के साथ कृष्ण बड़े हुए तो बृजवासियों से कहा कि आपको ऐसे किसी व्यक्ति की पूजा नहीं करनी चाहिए, जो न ईश्वर हो, न ईश्वरतुल्य. इसके बजाय गाय की पूजा करनी चाहिए, जिससे सभी का जीवन चलता है. कृष्ण ने बृजवासियों को गोवर्धन पर्वत की उपासना के लिए प्रेरित किया. बृजवासियों ने कहा कि इंद्र की पूजा बंद की गई तो वे क्रोधित होकर बारिश बंद कर देंगे तो गायों को चारा कैसे मिलेगा. इस पर कृष्ण ने कहा, हम किसी ऐसे देवता की पूजा क्यों करें, जो हमें डराता है. हमें चढ़ावे और पूजा करनी ही है तो गोपोत्सव मनाएं, इंद्रोत्सव नहीं. 


भड़के इंद्र ने ला दिया जलप्रलय


जब इसका पता देवराज इंद्र को चला तो उन्होंने बादलों से ब्रजवासियों पर प्रलय की तरह बारिश कराने का आदेश दिया, जिससे लोग डूब जाएं और क्षमा मांगने पर मजबूर हो जाएं. इंद्र के आदेश पर मूसलाधार बारिश शुरू हो गई, जो कई दिन तक चली. ब्रजवासी परेशान हो गए तो श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत अपनी अंगुली पर उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को नीचे बुला लिया. पर्वत के नीचे आने पर ब्रजवासियों पर वर्षा-गर्जना का कोई असर नहीं हुआ. परेशान इंद्र ने श्रीकृष्ण से युद्ध छेड़ दिया, लेकिन जब उन्हें श्रीकृष्ण के अवतार होने का पता चला तो क्षमा मांग ली. मगर तब से धरती पर इंद्र की पूजा बंद हो गई और गोवर्धन पूजन शुरू हो गया. 


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