Raksha Bandhan 2022: रक्षा बंधन पर बहनें भाइयों को अवश्य सुनाएं ये कथा, भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है ये कथा
Raksha Bandhan 2022: आज रक्षा बंधन का पर्व है. इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है. इस दिन बहनों को इस कथा को अपने भाइयों को सुनाना चाहिए. ये कथा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है.
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Raksha Bandhan 2022: रक्षा बंधन का पर्व जो लोग आज मना रहे हैं वे शुभ मुहूर्त और पंचांग का ध्यान रखें. इस बार रक्षा बंधन को लेकर संशय है. कुछ लोग 11 अगस्त तो कुछ लोग 12 अगस्त को रक्षा बंधन के पर्व को मनाने की बात कर रहे हैं. रक्षा बंधन पर बहनें अपने भाइयों को ये कथा अवश्य सुनाएं. मान्यता है कि इस कथा को सुनने से भाई बहनों के भाग्य में वृद्धि होती है, जीवन में सफलता मिलती है.
11 अगस्त को राखी बांधने का शुभ मुहूर्त (Raksha Bandhan 2022 Muhurta)
पंचांग के अनुसार पूर्णिमा तिथि 11 अगस्त् 2022 को प्रात: 10 बजकर 37 मिनट से 12 अगस्त को सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक रहेगी. 11 अगस्त को रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त 10 बजकर 37 मिनट के बाद शुरू हो जाएगा जो पूरा दिन रहेगा. हालांकि इस दिन भद्रा का साया भी रहेगा. भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है. लेकिन इस बार भद्रा पाताल में है. इसलिए कुछ विद्वानों का मानना है कि जब भद्रा पाताल में होती हैं तो ये मान्य नहीं होती है. यानि रक्षा बंधन पर इसका प्रभाव नहीं रहता है. भद्राकाल 11 अगस्त को शाम 5 बजकर 17 मिनट से शाम 6 बजकर 18 मिनट तक रहेगा.
रक्षा बंधन की कथा (Rakshabandhan Story)
रक्षाबंधन की कथा धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षाबंधन की कथा सुनाई थी जो इस प्रकार है. एक बार राक्षसों और देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया जो करीब 12 वर्षों तक चलता रहा. कोई भी कम नहीं पड़ रहा था. एक समय ऐसा भी आया जब असुरों ने देवराज इंद्र को भी पराजित कर दिया.
पराजित होने के बाद देवराज इंद्र अपने देवगणों को लेकर अमरावती नामक स्थान पर चले गए. इंद्र के जाते ही दैत्यराज ने तीनों लोकों पर अपना राज स्थापित कर लिया. इसके साथ ही राक्षसराज ने यह मुनादी करा दी की कोई भी देवता उसके राज्य में प्रवेश न करे और कोई भी व्यक्ति धर्म-कर्म के कार्यों में हिस्सा न ले. अब से सिर्फ राक्षस राज की ही पूजा होगी. राक्षस की इस आज्ञा के बाद धार्मिक कार्यों पर पूरी तरह से रोक लग गई. धर्म की हानि होने से देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी.
तब देवराज इंद्र देवगुरु वृहस्पति की शरण ली और इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा. तब देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र को रक्षा सूत्र का विधान करने के लिए कहा. इसके लिए उन्होंने कहा कि रक्षा सूत्र का विधान पंचांग के अनुसार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शुभ मुहूर्त में ही किया जाना चाहिए. रक्षा सूत्र बांधते समय इस मंत्र का पाठ करना चाहिए-
येन बद्धो बलिर्राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चल:।
देवगुरु बृहस्पति के कहे अनुसार इंद्राणी ने सावन मास की श्रावणी पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त पर इंद्र की दाहिनी कलाई पर विधि विधान से रक्षा सूत्र बांधा और युद्धभूमि में लड़ने के लिए भेज दिया. रक्षा सूत्र यानि रक्षा बंधन के प्रभाव से राक्षस पराजित हुए और देवराज इंद्र को पुन: खोया हुआ राज्य और सम्मान प्राप्त हुआ. मान्यता है कि इस दिन से रक्षाबंधन की परंपरा का आरंभ हुआ.
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