Skanda Sashti 2021: स्कंद षष्टी के दिन होती है भगवान कार्तिकेय की पूजा, व्रत करने से पूरी होती है पुत्रप्राप्ति की मनोकामना
Kartikeya Puja: भगवान स्कंद (lord skanda) को मरुगन (marugan) और कार्तिकेय (kartikeya) के नाम से भी जाना जाता हैं. स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा (kartikeya puja) करना शुभ माना जाता है.
Skanda Sashti 2021: भगवान स्कंद (lord skanda) को मरुगन (marugan) और कार्तिकेय (kartikeya) के नाम से भी जाना जाता हैं. स्कंद षष्ठी (skanda sashti) के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा (kartikeya puja) करना शुभ माना जाता है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष (bhadrapad month shukla paksha skanda sashti) की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी मनाई जाती है. भक्त इस दिन भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान की उपासना करने से उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इतना ही नहीं, कहते हैं ये व्रत करने से पुत्रप्राप्ति की इच्छा भी पूरी होती है. बता दें कि कार्तिकेय भगवान शिव के बड़े पुत्र (lord shiva son kartikeya) हैं और दक्षिण भारत (sounth india) में भगवान स्कंद काफी प्रसिद्ध देवता हैं. स्कंद षष्ठी को कंद षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है.
स्कंद षष्ठी का महत्व (importance of skand sashti)
कहते हैं ये तिथि भगवान कार्तिकेय को अधिक प्रिय है. इस दिन उन्होंने दैत्य ताड़कासुर का वध किया था. भगवान स्कंद को चंपा के पुष्फ अधिक प्रिय हैं इसलिए इसे चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं कि अगर कोई भक्त पुत्र प्राप्ति की मनोकामना के साथ स्कंद षष्ठी का व्रत रखता है तो भगवान उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण करते हैं. स्कंद षष्ठी तमिल हिंदूओं में अधिक प्रसिद्ध है.
स्कंद षष्ठी शुभ मुहूर्त 2021 (skand sashti muhurat 2021)
भाद्रपद, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि
प्रारम्भ – शाम 07:37 पी एम, 11 सितंबर से शुरू होकर
समाप्त – शाम 05:20 पी एम, 12 सितंबर तक है.
स्कन्द षष्ठी पूजन विधि (skand sashti pujan vidhi)
भगवान कार्तिकय को प्रसन्न करने के लिए और फल प्राप्ति के लिए स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है. उस दिन सवेरे स्नान आदि करके व्रत का संकल्प लिया जाता है. इतना ही नहीं, इस दिन भगवान कार्तिकेय के साथ शिव-पार्वती की प्रतिमा भी स्थापित की जाती हैं और उनकी भी पूजा होती है. पूजा के समय घी का दीपक जलाएं. भगवान को जल, पुष्प आर्पित करें. कलावा, अक्षत, हल्दी, चंदन पूजन की थाली में रखें और पूजा के समय भगवान को लगाएं. फल और फूल का प्रसाद चढ़ाएं. शाम के समय फिर से भगवान कार्तिकेय की पूजा कें, आरती करें और भोग लगाएं.