Skanda Sashti Vrat 2020: आज पंचमी और स्कन्द षष्टी व्रत का पर्व है. यह पर्व गणेश चतुर्थी के बाद आया है. जहां एक ओर कल से पूर देश में भगवान श्री गणेश का जन्मोत्सव गणेश चतुर्थी के रूप में पूरे देश में मनाया जा रहा है यह पर्व 10 दिनों तक अर्थात चतुर्दशी तक मनाया जायेगा. वहीँ दूसरी ओर महिलायें स्कन्द षष्टी का व्रत रहकर भगवान श्री गणेश के बड़े भाई भगवान कार्तिकेय की पूजा कर रही है. स्कन्द षष्ठी का व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को रखा जाता है.
कब रखा जाता है स्कन्द षष्ठी का व्रत
स्कन्द षष्ठी का व्रत पंचमी तिथि और षष्ठी तिथि के एक ही दिन एक साथ पड़ने पर यह व्रत रखा जाता है. इस व्रत में महिलायें शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा करती है.
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पूरी होती है संतान प्राप्ति की मनोकामना
शास्त्रों में मान्यता है कि स्कन्द षष्ठी के व्रत रखने और कार्तिकेय भगवान के पूजन करने से नि:संतान महिलाओं को संतान की प्राप्ति होती है. घर में सुख शांति और समृद्धि में वृद्धि होती है. जीवन सुखमय होता है. भगवान कार्तिकेय जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करते हैं.
मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से यश-शौर्य और वैभव की प्राप्ति होती है. जीवन आरोग्य होता है. स्कन्द षष्ठी का पर्व मुख्य रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है. दक्षिण भारत में कार्तिकेय को भगवान सुब्रह्मण्यम के नाम से भी जाना जाता है.
इन राशि के जातक को रखना चाहिए स्कन्द षष्ठी का व्रत
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान कार्तिकेय षष्ठी तिथि और मंगल ग्रह के स्वामी हैं. तथा दक्षिण दिशा में उनका निवास है. इस लिए जिन जातकों की कुंडली में कर्क राशि या नीच का मंगल होता है. उन्हें मगल को मजबूत करने तथा मंगल के शुभ फल प्राप्त करने के लिए भगवान कार्तिकेय का व्रत रखना चाहिए.
तारकासुर का किया बध
पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिकेय अपने माता –पिता और छोटे भाई से नाराज होकर कैलाश पर्वत छोड़कर मल्लिकार्जुन {शिवजी के ज्योतिर्लिंग} आ गए थे और स्कन्द षष्ठी के दिन तारकासुर का बध किया था. इसी तिथि को कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बनें थे.