Som Pradosh Vrat 2023: अप्रैल महीने में एक नहीं बल्कि दो सोम प्रदोष व्रत, भगवान शिव की पूजा से मिलेगा दोगुना लाभ
Som Pradosh Vrat 2023: सोमवार का दिन शिवजी की पूजा के लिए समर्पित होता है. इसलिए सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. वहीं अप्रैल महीने में एक नहीं बल्कि दो सोम प्रदोष व्रत होंगे.
Som Pradosh Vrat 2023 in April: भगवान शिवजी की पूजा के लिए सोमवार के साथ ही प्रदोष व्रत के दिन को बहुत ही खास माना गया है. हर महीने दो बार (शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष) त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत पड़ती है. अगर सोमवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इसे सोम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है.
मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रदोष काल में नृत्य करते हैं. इसलिए प्रदोष व्रत में प्रदोष काल या सायंकाल में शिवजी की पूजा का महत्व है. धार्मिक ग्रंथों में भी प्रदोष व्रत के व्रत और पूजन की महिमा के बारे में बताया गया है. इस दिन किए पूजा-व्रत से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को संकटों से मुक्ति के साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है.
अप्रैल महीने में दो सोम प्रदोष व्रत
अप्रैल का महीना शिवजी की पूजा के लिए बेहद खास होने वाला है. क्योंकि इस महीने हिंदू नववर्ष का पहला प्रदोष व्रत पड़ेगा. साथ ही अप्रैल के महीने में एक नहीं बल्कि दो सोम प्रदोष व्रत पड़ेंगे. पहला सोम प्रदोष व्रत सोमवार, 3 अप्रैल 2023 को होगा और दूसरा सोम प्रदोष व्रत सोमवार 17 अप्रैल को होगा. ऐसे में अप्रैल के महीने में शिव पूजन से भक्तों को दोगुना लाभ मिलेगा.
अप्रैल में सोम प्रदोष व्रत की तिथि और मुहूर्त
सोमवार 3 अप्रैल 2023 को चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि में प्रदोष व्रत की पूजा के लिए शाम 06:40 से 08:58 का समय शुभ है. इसके बाद अप्रैल में दूसरा सोम प्रदोष व्रत सोमवार, 17 अप्रैल को होगा. यह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि होगी. इस दिन पूजा के लिए शाम 05:57 से 07:32 तक का समय शुभ रहेगा.
सोम प्रदोष व्रत पूजा और लाभ
प्रदोष व्रत को सर्व सुख देने वाला व्रत कहा गया है. सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत की पूजा से दो गायों के दान के समान पुण्य मिलता है. साथ ही प्रदोष व्रत का व्रत रखने से चंद्र दोष भी दूर होता है. सोम प्रदोष व्रत के दिन व्रताधारी को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और सूर्यदेव के अर्घ्य देने के बाद शिवजी की पूजा करनी चाहिए. प्रदोष काल में फिर से शिवजी और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करें. भगवान को पंचामृत या गंगाजल से स्नान कराएं. इसके बाद बेलपत्र, सफेद फूल, अक्षत, भांग, धूप, नैवेद्य, पान, सुपारी, लौंग, इलायची और फल चढ़ाएं. 8 दिशाओं में 8 दीपक जलाकर प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें और इसके बाद आरती करें. प्रदोष व्रत में रात्रि जागरण का भी विधान है.
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