Pradosh Vrat 2021 Katha: हर माह की त्रयोदशी को शिव प्रदोष व्रत (Shiv Pradosh Vrat) रखा जाता है. अश्विन मास (Ashwin Month) के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि इस बार 4 अक्टूबर को पड़ रही है. आज, 4 अक्टूबर, सोमवार के दिन प्रदोष व्रत (Som Pradosh Vrat) है. शिव भक्तों ने आज प्रदोष व्रत रखा है. सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव (Bhagwan Shiv) को बहुत प्रिय है. कहते हैं कि भगवान शिव की अराधना करने, प्रदोष व्रत और पूजा अर्चना करने से भक्तों के सारे संकट दूर हो जाते हैं और भोलेनाथ उनकी सभी मुरादें पूरी करते हैं. आज का दिन शिव भक्तों के लिए बहुत शुभ दिन है. आज सोमवार के दिन जहां प्रदोष व्रत है वहीं, मासिक शिवरात्रि (Masik Shivratri) का व्रत भी आज के ही दिन रखा जाएगा. शिव जी के दोनों ही प्रिय दिन सोमवार के दिन है. इसलिए इनका महत्व और अधिक बढ़ गया है. 


Som Pradosh Vrat Puja Time (प्रदोष व्रत पूजा समय)


आज के दिन प्रदोष व्रत की पूजा अगर प्रदोष काल में की जाए तो शुभ होता है. मान्यता है कि प्रदोष काल में ही प्रदोष व्रत की पूजा-अर्चना करनी चाहिए. प्रदोष काल वो समय होता है, जब दिन और रात मिलते हैं. प्रदोष व्रत का पूजा का मुहूर्त 04 अक्टूबर शाम को 06:04 मिनट से रात 08:30 मिनट तक है. बता दें कि प्रदोष व्रत की पूजा सूर्यास्त होने से पौने घंटे पहले की जाती है.


Pradosh Vrat Katha (सोम प्रदोष व्रत कथा)


सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्रह्मणी रहती थी. पति के स्वर्गवास के बाद उसका कोई सहारा न रहा इसलिए वे अपने पुत्र के साथ सुबह ही भीख मांगने निकल जाती थी. इसी तरह वह दोनों का पेट पालती थी. एक दिन घर लौटते समय उसे एक लड़का घायल अवस्था में दिखाई दिया. वे दर्द से करहाता हुआ दिखाई दिया, दयावश वह उसे अपने घर ले आई. वे लड़का विदर्भ का राजकुमार था. उसके राज्य पर शत्रु सैनिकों ने आक्रमण करके उसके पिता को बंदी बना लिया था और उनके राज्य पर कब्जा कर लिया था. इसलिए वे इधर से उधर भटक रहा था. वे राजकुमार ब्राह्मणी और पुत्र के साथ उन्हीं के घर में रहने लगा.   


एक दिन अंशुमति नामक गंधर्व कन्या राजकुमार को देखते ही उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने ले आई और माता-पिता को भी राजकुमार पसंद आ गए. वहीं, कुछ दिनों बाद शंकर भगवान उनके माता-पिता को सपने में दिखाई दिए. अंशुमति का विवाह राजकुमार के साथ करने को बोला. वैसा ही किया गया. 


ब्राह्मणी भगवान शिव की पूजा-पाठ के साथ-साथ प्रदोष व्रत भी किया करती थी. प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की मदद से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को अपने राज्य से बाहर कर दिया और पिता के साथ अपने राज्य में रहने लगा. वहीं, ब्राह्मणी और उसके पुत्र को राजकुमार ने अपना प्रधानमंत्री बनाया. मान्यता है कि जिस तरह प्रदोष व्रत रखने और भगवान शिव की पूजा आदि करने से  ब्राह्मणी और उसके पुत्र के दिन बदले, वैसे ही शिव भक्तों के भी दिन बदल जाते हैं. 


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