Monday Shiv Puja: मार्गशीर्ष माह में करें भगवान शिव के शम्भुं स्वरूप का पूजन, पूरी होगी मनोकामनाएं
Shambhu Stuti Path: हिंदू धर्म में भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है. भगवान शिव का शिव शम्भुं नाम उनके नाम शिव और माता पार्वती के अंबा नाम से मिल कर बना है.
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Shambhu Stuti Path: हिंदू धर्म में भगवान शिव (Bhagwan Shiva) को कई नामों से पुकारा जाता है. भोलेशंकर (Bholeshankar), भोलेनाथ (Bholenath), महादेव (Mahadev), काल भैरव (Kaal Bhairav) और शिव शम्भुं (Shiva Shambhu). भगवान शिव का शिव शम्भुं नाम उनके नाम शिव और माता पार्वती के अंबा नाम से मिल कर बना है.
भगवान शिव का शम्भुं स्वरूप सारे संसार का कल्याण करने वाला है. मार्गशीर्ष या अगहन माह (Margashirsh Month) में सोमवार के दिन भगवान शिव के शम्भुं (Monday Lord Shiv Shambhu Puja) स्वरूप की पूजा करना लाभकारी और विशेष फलदायी होती है. इस दिन भगवान शिव का पूजन और उपासना करने से जीवन में सभी कष्टों का नाश होता है.
मान्यता है कि अगहन मास के सोमवार को ब्रह्म पुराण में रचित शम्भुं स्तुति का पाठ करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. ऐसा कहा जाता है कि लंका पर चढ़ाई करने से पहले श्री राम ने इसी स्तुति का पाठ किया था. और भगवान शिव के आशीर्वाद से लंका पर विजय प्राप्त की थी. बता दें कि सोमवार को शिवलिंग पर जल अर्पित करते हुए शम्भुं स्तुति का पाठ (Shambhu Stuti Path) करें. ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं.
शम्भुं स्तुति पाठ (Shambhu Stuti Path)
नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणं
नमामि सर्वज्ञमपारभावम् ।
नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं
नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥१॥
नमामि देवं परमव्ययंतं
उमापतिं लोकगुरुं नमामि ।
नमामि दारिद्रविदारणं तं
नमामि रोगापहरं नमामि ॥२॥
नमामि कल्याणमचिन्त्यरूपं
नमामि विश्वोद्ध्वबीजरूपम् ।
नमामि विश्वस्थितिकारणं तं
नमामि संहारकरं नमामि ॥३॥
नमामि गौरीप्रियमव्ययं तं
नमामि नित्यंक्षरमक्षरं तम् ।
नमामि चिद्रूपममेयभावं
त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥४॥
नमामि कारुण्यकरं भवस्या
भयंकरं वापि सदा नमामि ।
नमामि दातारमभीप्सितानां
नमामि सोमेशमुमेशमादौ ॥५॥
नमामि वेदत्रयलोचनं तं
नमामि मूर्तित्रयवर्जितं तम् ।
नमामि पुण्यं सदसद्व्यातीतं
नमामि तं पापहरं नमामि ॥६॥
नमामि विश्वस्य हिते रतं तं
नमामि रूपापि बहुनि धत्ते ।
यो विश्वगोप्ता सदसत्प्रणेता
नमामि तं विश्वपतिं नमामि ॥७॥
यज्ञेश्वरं सम्प्रति हव्यकव्यं
तथागतिं लोकसदाशिवो यः ।
आराधितो यश्च ददाति सर्वं
नमामि दानप्रियमिष्टदेवम् ॥८॥
नमामि सोमेश्वरंस्वतन्त्रं
उमापतिं तं विजयं नमामि ।
नमामि विघ्नेश्वरनन्दिनाथं
पुत्रप्रियं तं शिरसा नमामि ॥९॥
नमामि देवं भवदुःखशोक
विनाशनं चन्द्रधरं नमामि ।
नमामि गंगाधरमीशमीड्यं
उमाधवं देववरं नमामि ॥१०॥
नमाम्यजादीशपुरन्दरादि
सुरासुरैरर्चितपादपद्मम् ।
नमामि देवीमुखवादनानां
ईक्षार्थमक्षित्रितयं य ऐच्छत् ॥११॥
पंचामृतैर्गन्धसुधूपदीपैः
विचित्रपुष्पैर्विविधैश्च मन्त्रैः ।
अन्नप्रकारैः सकलोपचारैः
सम्पूजितं सोममहं नमामि ॥१२॥
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